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Showing posts from 2014

फिर तुम्हारा साथ मिले न मिले

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सालों पहले मुझे हो गई थी तुमसे मोहब्बत जिसे अपने दिल में छुपाकर काटा मैंने हर एक दिन मेरे पास भले ही नहीं थे तुम लेकिन तुमसे दूर नहीं थी मैं आज जब मिले हो तुम मुझे इतने सालों बाद तो जी करता है कि आने वाले हर पल को बिताऊं तुम्हारे साथ तुम्हारेचेहरे को बसा लूं अपनी आंखों में तुम्हारी खुशबू से महका लूं अपना मन छुप जाऊं तुम्हारे सीने में मैं समा जाऊं तुम्हारी सांसों में हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ देखती रहूं तुम्हारी सूरत सारी रात रख लो तुम मेरे कंधे पर सिर खो जाऊं मैं तुम्हारी बातों में फिर जी लूं हर एक लम्हे को जी भरकर क्या पता फिर तुम्हारा साथ मिले न मिले

मैं क्यों हूं

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तुम हो या नहीं नहीं पता है मुझे लेकिन हर दिन  दिल में एक सवाल  उठता है कि क्या तुम  वाकई में हो और फिर  ढूंढ लेती हूं खुद ही उस सवाल का जवाब  लेकिन फिर भी मन में  असमंजस सा रह जाता है जब कोई मरते हुए बच जाता है तो लगता है कि हां तुम हो जब कोई बच्चा बेमौत  मर जाता है तो लगता है कि तुम  कहीं नहीं हो जब मिलती है किसी को उसके गुनाहों की सजा तो लगता है कि तुम हो जब देखती हूं अपने  आस-पास की बुराई को हर दिन जीतते हुए तो लगता है कि तुम नहीं हो तुम्हारे होने या न होने पर कई बार तर्क किए मैंने कभी खुद से कभी दूसरों से कई बार मेरे तर्क जीते  और उन्होंने कहा कि तुम नहीं हो कई बार मेरी आस्था जीती और उसने कहा कि तुम हो लेकिन मेरा हर तर्क हार जाता है जब मैं आइने में देखती हूं खुद को और सोचती हूं कि गर तुम नहीं हो तो मैं क्यों हूं, ये शरीर क्यों है,  मेरा वजूद क्यों है और तब मुझे बस एक ही जवाब मिलता है कि तुम हो तो ही मेरा वजूद है तुम हो तो ही ये दुनिया है  ...

एक और कोशिश

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जानती हूं कि आज भी तुम कुछ नहीं बोलोगे नहीं दोगे मुझे कोई जवाब फिर भी करना चाहती हूं एक और कोशिश पूछना चाहती हूं तुमसे कि क्या तुम भी करते हो मुझसे प्यार हां में या न में जो भी हो तुम्हारा जवाब करो तुम मेरा यकीन कभी नहीं कम होगा मेरे दिल में तुम्हारा रुबाब जिंदगी की हर मुश्किल में दूंगी हर पल मैं तुम्हारा साथ हो चाहे मंजिल कितनी भी दूर थामे रहूंगी मैं तुम्हारा हाथ तुम्हारी कमजोरी नहीं तुम्हारी ताकत बनकर हर राह पर खड़ी रहूंगी तुम्हारा हौसला बनकर अगर कहोगे तुम मुझसे कि करो कुछ दिन और इंतजार तो भी फिक्र न करना क्योंकि अपनी रूह में बसाकर तुमसे करती रहूंगी मैं हर सांस के साथ प्यार

...क्योंकि यादें कभी नहीं मरतीं

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यादें... कुछ सहमी सी, कुछ ठहरी सी कुछ नाजुक सी, कुछ हल्की सी कुछ मीठी सी, कुछ खट्टी भी सालों से बंद पड़े मन के दरवाजे की कुंडी को हौले से खोलकर दिल में दाखिल होतीं... धीरे से कदम बढ़ातीं, कुछ धूल चढ़ी परतों को फूक मारकर उड़ातीं तुम्हारे चेहरे के हर भाव को आंखों के सामने दोहरातीं मुस्कुराकर कभी कहा था तुमने कि मैं ही हूं तुम्हारा प्यार उस एक पल में पूरी जिंदगी को जी जातीं बचपन में अपने गांव में एक आम के पेड़ पर जो लिखा था मैंने तुम्हारा नाम उसे जेहन में फिर से सजातीं दिल को ये एहसास दिलातीं कि हो जाओ चाहे तुम किसी के भी बिताओ अपनी जिंदगी किसी के साथ लेकिन जब तक हैं ये यादें तब तक तुम हो... मेरे करीब, मेरी सांसों में समाए और रहोगे ताउम्र यूं ही मेरे साथ चलते क्योंकि यादें कभी नहीं मरतीं...

दूरियां

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मोहब्बत में दूरियां अहम किरदार निभाती हैं पास आने की ख्वाहिश को हर पल जगाती हैं अपनी चाहत से दूर रहना मुश्किल होता है बहुत पर नजदीकियों की कीमत दूरियां ही बताती हैं दूर रहकर भी रहे ताजी वही सच्ची मोहब्बत है साथ रहने से तो आदत भी प्यार नजर आती है दूरियों की साजिश को समझ कर तो देखो जरा महबूब की हसीं यादों को ये पलकों में छुपाती हैं मोहब्बत में दूरियां अहम किरदार निभाती हैं पास आने की ख्वाहिश को हर पल जगाती हैं

बस भी करो अब तड़पाना

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तेरी मोहब्बत ने बनाया है दीवाना हर पल याद आता है तेरा अफसाना कि धीरे से तेरा मेरे आगोश में आना फिर सिमट कर बाहों में छुप जाना दिल से उतरकर धड़कनों में समाना जुल्फों को अपनी मेरे चेहरे पर बिखराना आंखों में मेरी तेरा डूब जाना पलकों को झुकाकर तेरा शरमाना हौले से फिर नजरों को उठाना बिन बोले ही बहुत कुछ कह जाना तेरी हर बात में मेरा जिक्र आना कैसे भूलूं मैं तेरा वो मुस्कुराना कि फिर आ जाओ मेरे पास तुम बस भी करो अब तड़पाना

बस तुम्हारा प्यार

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कुछ नहीं चाहिए मुझे सिवाय तुम्हारे प्यार के तुम्हारा प्यार ही है मेरी जिंदगी की आखिरी मंजिल यूं तो कोई कमी नहीं है मेरे जीवन में लेकिन कहीं कुछ अधूरा सा है जो हर पल सालता है मुझे सिर्फ तुम ही कर सकते हो इस अधूरेपन को दूर और मुझे सम्पूर्ण इतनी इल्तजा है मेरी तुमसे कि आ जाओ तुम मेरे पास मैं जीवन भर रहना चाहती हूं तुम्हारे साथ तुम्हारी हर खुशी को अपनी खुशी बनाऊंगी मैं और तुम्हारे हर गम को पूरे दिल से अपनाऊंगी मैं खयाल रखूंगी तुम्हारी हर पसंद-नापसंद का मैं हर वो काम करूंगी जो तुम्हें पसंद हो जानती हूं मैं कि तुम्हें नहीं पसंद कि कोई हर बात पर तुम्हारी हां में हां मिलाए लेकिन ये गुलामी नहीं होगी समर्पण होगा मेरा तुम्हारे लिए इतना प्यार जो करती हूं तुमसे मैं नहीं बनना चाहती महान कि अपने प्यार से दूर रहकर बिता दूं पूरा जीवन मुझे हर दिन तुम्हारा प्यार चाहिए और हर पल तुम्हारा साथ कि सात वचनों, सात फेरों से सात जन्मों के लिए जोड़ना चाहती हूं मैं तुमसे बंधन और तुम्हारी हर सांस से मैं जीना चाहती हूं अपना जीवन

तुम भी करोगे मुझसे प्यार

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बहुत प्यार करती हूं मैं तुमसे खुद से भी ज्यादा शायद रह लूं मैं तुमसे दूर भी लेकिन नहीं रहना चाहती मैं तुम्हारे बिना आज मांगना है मुझे तुमसे एक हक क्या तुम मुझे दोगे ये अधिकार कि सुबह आंखें खोलकर जिसको मैं सबसे पहले देखूं वो चेहरा तुम्हारा हो जिसके सीने में छिपने से मुझे हर खुशी मिल जाए वो सीना तुम्हारा हो जिसका साथ पाकर हर मुश्किल से लड़ सकूं वो साथ तुम्हारा हो जिसके कांधे पर सिर रखकर हर गम को पी सकूं वो कांधा तुम्हारा हो जिसके सहारे पूरा जीवन जी सकूं वो प्यार तुम्हारा हो जिसकी बांहो के घेरे में मैं सुरक्षित महसूस करूं वो घेरा तुम्हारा हो मेरी हर सुबह हर शाम पर पहरा तुम्हारा हो बोलो न क्या तुम दोगे मुझे ये हक कि जिसका हाथ थामकर मैं सात फेरे लूं वो हाथ तुम्हारा हो मेरे हर गम हर खुशी हर दिन हर रात हर लम्हे हर पल पर नाम तुम्हारा हो क्या निभाओगे मेरा साथ ताउम्र मेरा हाथ थामकर बनोगे तुम मेरे हमसफर तुम भी करोगे मुझसे प्यार तुम्हारी ‘हां’ के इंतजार में

सांसें चली गर्इं

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तेरा मुंतजिर कबसे खड़ा था तेरे इंतजार में तू न आया देख उसकी सांसें चली गर्इं रूह तो निकली नहीं जिस्म से उसके दिल से लेकिन धड़कनें खोती चली गर्इं कतरा-कतरा खून बह रहा है आंखों से आंसू की बूंदें नसों में घुलती चली गर्इं इश्क में तेरे वो जीकर फना हो गया मौत आई और बस छूकर चली गई यादें ही तेरी हैं अब उसके जीने का सहारा बातों की शोखियां तो मिटती चली गर्इं

रिश्ता पुराना है

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एहसास ये नया सा है लेकिन रिश्ता पुराना है महसूस करो तो हकीकत, नहीं तो फसाना है कसमे, वादे, प्यार, वफा नहीं हैं बस कहने की बातें इनके बिना बहुत ही मुश्किल जिंदगी बिताना है तुम चुप रहकर ही बयां करो चाहत तुम्हारी मुझे तो अल्फाजों में ही अपना प्यार जताना है उम्मीद है कभी तो करोगे इजहार-ए-मोहब्बत हर सांस के साथ मुझे इंतजार करते जाना है तुम्हारे बिना कुछ नहीं हूं मैं जान लो ये तुम भी तुम्हारे दिल का इक कोना ही अब मेरा ठिकाना है एहसास ये नया सा है लेकिन रिश्ता पुराना है महसूस करो तो हकीकत, नहीं तो फसाना है

यूं ही बीते जिंदगी का सफर

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बेखयाली में अक्सर एक खयाल आता है  कि हंसी हैं वादियां, घटाएं और चमन आवारा सी फिजाएं हैं हर तरफ नदी का किनारा एक खूबसूरत लेटे हो तुम गोद में मेरी सिर रखकर देख रही हूं मैं तुम्हें अपलक तुम्हारा एक हाथ मेरे हाथ में है और दूसरे हाथ से घुमा रही हूं मैं तुम्हारे  बालों में उंगलियां तुम्हारे चेहरे पर है हल्की सी मुस्कुराहट मेरी आंखों में भी कुछ शर्म सी है तुम्हारी आवाज में कशिश सी है मेरे दिल में भी हलचल अजब सी  है बैठी रहती हूं मैं यूं ही कई घंटों और  तुम भी लेटे रहते हो बस इसी तरह ख्वाब है ये मेरा सबसे बड़ा कि  ये खयाल बन जाए मेरे जीवन की हकीकत यूं ही बस यूं ही कट जाए हर लम्हा यूं ही बीते जिंदगी का सफर 

इमरोज के लिए

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जितना भी पढ़ूं तुम्हारे बारे में उतना ही और पढ़ने का मन करता है तुम्हारे बारे में और जानने का तुम्हें महसूस करने का मन करता है तुम्हारी संजीदगी से प्यार हो गया है मुझे हो गया है मुझे तुम्हारी लेखनी से प्यार तुम्हारी सोच से प्यार है मुझे तुम्हारे समर्पण से प्यार है मुझे तुम्हारी सादगी से प्यार है मुझे तुम्हारे कैनवास तुम्हारी कूंची से प्यार है मुझे प्यार है मुझे तुम्हारे उस प्यार से जो तुमने अमृता को किया सच कहूं तो मुझे तुमसे प्यार है तुम बहुत अच्छे हो इमरोज

तू है

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मेरी चाहत तू, मेरी जिंदगी तू, मेरा ईमान तू है खलिस है तू दिल की, आराम तू है कुदरत की रहमत तू, इश्क का पयाम तू है छाया है मुझ पर जिसका सुरूर वो जाम तू है शबनमी बूंद सा मखमल खयाल तू है ढलते सूरज की अंगड़ाई सा अल्हड़ ख्वाब तू है मेरी आशिकी का खूबसूरत कलाम तू है जिसके बिना न जी पाऊं मैं वो हंसी नाम तू है मेरा मकसद तू, मेरा जहां तू, मेरा मुस्तकबिल तू है जिस राह से भी मैं गुजरूं उसकी मंजिल तू है सालों से की हुई मोहब्बत का अंजाम तू है खुदा से की हर मन्नत का ईनाम तू है मेरी चाहत तू, मेरी जिंदगी तू, मेरा ईमान तू है खलिस है तू दिल की, आराम तू है

बस तुम्हीं हो

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तुम्हारे ख्वाबों  ने  मेरे मन में कुछ ऐसा मकाम बनाया है कि हर पल मेरे खयालों में बस तुम्हारा ही नाम छाया है तुम्हारा हाथ थामकर कट जाएगा जिंदगी का सफर तुम्हारे साथ ही बीतेगा अब हर मौसम और पहर तुम्हारी आंखों की कशिश में हर शाम डूबा करेंगे तुम्हारी बाहों के घेरे में ही अब दिन और रात कटेंगे पहली हो या आखिरी मेरी मोहब्बत बस तुम्हीं हो हर पल जो मैं करती हूं वो इबादत बस तुम्हीं हो जिस्म-ओ-जान से अब तुम्हारे बनकर हम जिएंगे तुम्हारी गोद में सिर रखकर ही हम मौत से मिलेंगे

जिसे आता प्यार निभाना है

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दुआओं बद्दुओं का नाता बहुत पुराना है जो किस्मत है मिलेगा वही ये तो सबने माना है मुश्किल हालात में भी हिम्मत जुटाना है लहरों से लड़कर ही दरिया के पार जाना है जिंदगी इतनी भी नहीं है आसां जितनी बचपन में लगती है जवानी में कदम रखने पर इस मर्म को जाना है दाव-पेच ऊंची-नीच का खेल ये जमाना है जीतता वही है इसमें जिसे आता प्यार निभाना है

शिक्षक दिवस पर

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तुमने ही दी सतत शिक्षा हमेशा ज्ञान की राह पर चलना सिखाया नीति और सम्मान की सूरज सा तेज तुममे हैं और चांद सी शीतलता स्रेह की बारिश से तुमने जीवन हमारा सींचाा जब भी भटके हम तुमने रास्ता दिखाया सही और गलत का फर्क तुमने ही सिखाया शिक्षा हो विषय की या नैतिकता का ज्ञान कहा था तुमने कि इतना कभी न झुकना  कि झुक जाए स्वाभिमान गुरु हो तुम हमारे, हो ईश्वर के समान शिक्षक दिवस पर तुमको कोटि-कोटि प्रणाम

यकीं है मुझे

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मुहब्बत पे तुम्हारी यकीं है मुझे  पर किस्मत पर अपनी भरोसा नहीं पास रहना तुम्हारे है मुश्किल बहुत दूर जाना भी तुमसे है मुमकिन नहीं एक बारी तो करीब आकर देखो मुझे  दिल तो है सीने में पर धड़कन नहीं कहते हैं सब तुम्हारे साथ होगी जिंदगी बदतर हमारी बिन तुम्हारे भी तो अब जन्नत नहीं कहना है हमें आज तुमसे बस इतना  कि तुम जो नहीं तो हम भी नहीं

कान्हा तुम ही मेरा प्यार हो

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साज तुम्हीं, शृंगार तुम्हीं, तुम जीवन का आधार हो हृदय तुम्हीं, धड़कन तुम्हीं, तुम ही मेरा प्यार हो आदि तुम्हीं, अनादि तुम्हीं, तुम ही अनन्त का सार हो रग-रग में बहता लहू हो तुम, जीवन की रसधार हो धर्म तुम्हीं, अधर्म तुम्हीं, प्रतिशोध तुम ही, प्रतिकार हो भक्ति तुम्हीं, समर्पण तुम्हीं, स्वप्न तुम ही साकार हो गोपियों के हो कन्हइया तुम, यशोदा का संसार हो मीरा के तुम गिरधर नागर, राधा के प्राणाधार हो कान्हा तुम्हीं, केशव तुम्हीं, तुम ही नंद के लाल हो मंद-मंद मुस्कान लिए तुम सबके खेवनहार हो जन्म दिवस है आज तुम्हारा, तुम्हें समर्पित नेह है सारा सभी मंगल गीत हैं गाएं, तुम ही हर मां का दुलार हो गायों के तुम, ग्वालों के तुम, सिर मोर मुकुट चितचोर हो आशा तुम्हीं, अभिलाषा तुम्हीं, मेरे जीवन की डोर हो साज तुम्हीं, शृंगार तुम्हीं, तुम जीवन का आधार हो हृदय तुम्हीं, धड़कन तुम्हीं, तुम ही मेरा प्यार हो

डोर जैसी जिंदगी

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सच है एक डोर जैसी तो होती है हमारी जिंदगी एक डोर की सारी खूबियां होती हैं इसमें  कभी रेशम की डोर जैसी सरल और सहज लेकिन जरा सी लापरवाही से उलझ जाने वाली कभी ऊन की डोर जैसी मोटी और सख्त लेकिन दूसरों की जिंदगी में इंद्रधनुषी रंग भरने वाली कभी एंकर के धागे जैसी थोड़ी मुलायम और कुछ कठोर पर बेकार से एक जिस्म पर प्रेम के बेल-बूटे गढ़ने वाली कभी पतंग के मांझे जैसी तेज-तर्रार और पैनी लेकिन लक्ष्य से दूर होते ही अस्तित्वविहीन होने वाली कभी सूत के धागे जैसी सफेद और चमकदार सबकी जिंदगी में धवल चांदनी बिखेरने वाली कभी बान की डोर जैसी मजबूत और जिद्दी अपने बारम्बार प्रयास से सिल पर निशान डाल देने वाली कभी कपड़े सुखाने वाली डोर जैसी सहनशील अथाह बोझ सहकर भी आह न करने वाली सच है एक डोर जैसी ही तो है हमारी जिंदगी चाहे कितनी ही गुण समा ले अपने अंदर बन जाए चाहे कितनी ही मजबूत और सहनशील लेकिन एक तेज झटके से जैसे टूट जाती है डोर वैसे ही एक झटके में सांसों का साथ छोड़कर देह को निर्जीव कर देने वाली

प्रीत की धुन

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तन्हाई हमें खामोश रहकर बहुत कुछ बताती है खमोशी अक्सर तन्हाई में धुन कोई गुनगुनाती है हौले-हौले दबे पांव से दिल में जब तू आती है तेरे चेहरे की रंगत तब सुर्ख लाल हो जाती है पायल की छन-छन भी तेरी कोई राग सुनाती है झुकती उठती पलकें तेरी बेकरार कर जाती हैं हाथों के कंगन जब तू खन-खन-खन खनकाती है मन में मेरे प्रेम की एक धारा सी बह जाती है प्यारी तेरी बोली इतनी मेरा मन भरमाती है तुझमें ही खो जाऊं मैं चुपके से कह जाती है बंद आंखों से तू हर जगह नजर मुझे आती है आंखें खोलूं तो न जाने क्यूं ओझल तू हो जाती है एक दिन होगी तू मेरी हर तन्हाई यही बताती है खामोशी भी तन्हाई में प्रीत की धुन ही गाती है

मुश्किल होता है

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दिल की बातों को अल्फाज दे पाना मुश्किल होता है किसी-किसी राज को दुनिया को बताना मुश्किल होता है यूं तो जी लेंगे हम तुम्हारे बिना भी जिंदगी पर दिए के बिना बाती का अस्तित्व बचाना मुश्किल होता है इस जहां में बातें तो करते हैं सब बड़ी-बड़ी पर जब खुद पर गुजरे तो सह पाना मुश्किल होता है कहते हैं खुश रहो उसमें जिसमें खुदा की हो मर्जी पर कई बार उसकी मर्जी के आगे सिर झुकाना मुश्किल होता है सुनाते हैं यहां सब किस्से शमां और परवाने की मोहब्बत के पर परवाने के लिए शमां में जल जाना भी मुश्किल होता है राधा और कृष्ण के प्यार की यहां देते हैं सब मिसालें पर राधा-कृष्ण के जैसा प्यारा निभाना मुश्किल होता है अपनी चाहत के लिए मर जाना माना बुजदिली है मैंने पर उसके बिना जी पाना भी मुश्किल होता है ये इश्क की बातें हैं सिर्फ समझेंगे आशिक ही संगदिलों का इन्हें समझ पाना मुश्किल होता है

मेरी मोहब्बत

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पहले भी कह चुके हैं और आज फिर एक बार कहते हैं कि हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं बेपनाह करते थे और बेइंतहा करते रहेंगे सिर्फ इस जन्म में ही नहीं आने वाले हर जन्म में हम तुमसे ही मिलेंगे हमारी शक्ल-ओ-सूरत बदल जाएं लेकिन अपनी मोहब्बद हम यूं ही निभाएंगे हर जन्म में हम इश्क का रिश्ता  बस ऐसे ही बढ़ाते जाएंगे मंजिल हमें मिले न मिले पर रास्ते बनाते जाएंगे कभी तुम हवा सा बहते रहना हम खुशबू सा उसमें बिखर जाएंगे कभी तुम प्यासी धरती बन जाना हम बादल सा तुम पर बरस जाएंगे कभी तुम बन जाना अथाह सागर सा हम नदी की धाराओं सा तुम में मिल जाएंगे जब तुम धूप में चल रहे होगे कभी अकेले हम परछाई बनकर तुम्हारा साथ निभाएंगे कभी तुम बन जाना एक दरख्त सा हम मिट्टी बन खुद में तुम्हारी जड़ों को फैलाएंगे जो कभी न आई नींद तुम्हें हम मां की तरह लोरी गाकर तुम्हें सुलाएंगे ये वादा है हमारा तुमसे कि जीवन की हर आपाधापी में  हम साथ तुम्हारा निभाएंगे

क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

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ख्वाबों खयालों में हर पल तेरा चेहरा नजर आता है ऐ मेरे मालिक बता, क्यों ये चांद दिन में नजर आता है लगा के काजल दिन को रात कर दो  क्या कोई बता के नजर लगता है क्यों ये चांद दिन में नजर आता है क्यों ये दिल इतना बेवस है कौन जाने क्या कशमकश है मेरे मौला कुछ समझ नहीं आता है क्यों ये चांद दिन में नजर आता है ये नकाब हो गया है दुश्मन मेरा रुख से जरा हटाओ दिखाओ दिलकश चेहरा खुदा की नेमत को भी कोई छुपाता है क्यों ये चांद दिन में नजर आता है इतना आसां नहीं तुम्हें भुला देना मदहोश हो जाऊं तो यारों हिला देना उनकी आमद से मौसम बदल जाता है क्यों ये चांद दिन में नजर आता है हमें देखकर वो अक्सर घबरा जाते हैं शायद रुसबा होने से डर जाते हैं बेजान जिस्म पर क्यों तरस नहीं आता है क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

तुम चुप रहो

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एक नन्ही सी कली के टूटे-फूटे स्वर जैसे ही सधकर निकलना शुरू होते हैं तभी से उसे चुप रहने का पाठ पढ़ाया जाता है चुप रहना ही है लड़कियों का गहना  उन्हें यह समझाया जाता है जैसे-जैसे वे बड़ी होती जाती हैं उनके बोलने पर बंदिशे बढ़ती जाती हैं तुम चुप रहो, लड़कियां ज्यादा बोलते हुए अच्छी नहीं लगतीं, ये कहकर बंद करा दिया जाता है उनका मुंह और बाहर निकलने को बेताब उनके शब्द अंदर ही घुटकर तोड़ देते हैं अपना दम जब भी  वे कोशिश करती हैं कुछ बोलने की उनके सामने पेश कर दिये जाते हैं  कई ऐसी लड़कियों के उदाहरण जिनके कम बोलने से ही उनके  अच्छा होने की सार्थकता सिद्ध होती है कभी नहीं बोल पातीं वे  पहले बाप के डर से, समाज के डर से फिर कभी पति के डर से, कभी सास के डर से एक दिन सोचा मैंने कि क्या करती हैं आखिर वे अपने अनकहे शब्दों का शायद सहेजती रहती होंगी उन्हें और गुंथकर बना लेती होंगी उनकी एक माला फिर जब इस दुनिया को छोड़ वे  चली जाती होंगी दूसरी दुनिया में तब श्रद्धांजली स्वरूप अपनी लाश पर चढ़ा लेती होंगी अपने ही शब्दों की ...

जिंदगी

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एक  अबूझ पहेली जिंदगी एक खुशनुमा अहसास जिंदगी हर पल कुछ हासिल करने की चाह जिंदगी कभी काली परछाई सी तो कभी सुनहरे प्रतिविम्ब सी जिंदगी हर पल दरकते रिश्तों में  अपनत्व का गारा भरती जिंदगी कभी पतंग के माझे सी उलझती कभी रेशम की डोर सी सुलझती जिंदगी कभी फूलों सी सुगंध बिखेरती कभी कांटों सी भेदती जिंदगी कभी अधूरे ख्वाब सी कभी सम्पूर्ण विश्वास सी जिंदगी हमें अपनों से दूर कर रुलाती और फिर हमारी गोद में किलकारियां दे जाती जिंदगी हर खुशी, हर गम में हमें अनवरत  चलते जाने का पाठ पढ़ाती जिंदगी

तुम्हारा नाम लिखेंगे

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मुकद्दर-ए-दस्त के हर सफे पे तुम्हारा नाम लिखेंगे तुम्हीं से आगाज और तुम्हीं से अपना अंजाम लिखेंगे याद आएगी जब तुम्हारी तुम्हें पैगाम लिखेंगे खत में तुम्हें हम अपना सलाम लिखेंगे और फिर उसमें लफ्ज-ए-मोहब्बत तमाम लिखेंगे दूर तुम्हें हम खुद से कभी होने नहीं देंगे अपनी चाहत को हम कभी खोने नहीं देंगे हमारे दरमियां कभी फासलों को आने नहीं देंगे जर्रे-जर्रे पे अपने इश्क का कलाम लिखेंगे मुकद्दर-ए-दस्त के हर सफे पे तुम्हारा नाम लिखेंगे जहां की सारी खुशियों को तुम्हारे दामन में भर देंगे दिल अपना निकालकर तुम्हारे कदमों में रख देंगे आंसू का एक कतरा भी आंखों से गिरने नहीं देंगे आशिकी की किताब में खुद को तुम्हारा गुलाम लिखेंगे मुकद्दर-ए-दस्त के हर सफे पे तुम्हारा नाम लिखेंगे

बस इतना है कहना

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बहुत कुछ अनकहा है मेरे और तुम्हारे बीच बहुत कुछ है जो कहना चाहती हूं मैं तुमसे बताना चाहती हूं तुम्हें कि तुम्हारे होने से ही  मुझे अपनी धड़कनोें का एहसास होता है तुम्हारी एक धीमी सी मुस्कारहट भी  मुझमें नई ऊर्जा का संचार कर जाती है तुम्हारा मुझसे ये कहना कि  नहीं रह सकते तुम मेरे बिना मेरे वजूद को और मजबूत बना देता है जब कोई करता है तुम्हारी तारीफ तो मुझे खुद पर गर्व का अनुभव होता है जब तुम मेरा हाथ पकड़ते हो तो लगता है  कि जीवन का हर युद्ध हैं जीत जाऊंगी तुम्हारा साथ मुझे जेठ की दुपहरी में भी ठंडक सा दे जाता है तुमसे दूर होने का खयाल भी मुझे भीड़ में तन्हा कर जाता है तुम्हारी आंखों में चाहत की वो शिद्दत देखकर तुम पर फना हो जाने को जी चाहता है तुम्हारे बिना गुजारे कुछ पल भी मुझे  सदियों से लम्बे लगते हैं और तुम्हारे साथ बिताए कई घंटे  मिनटों में बदल जाते हैं अब मुझे तुमसे बस इतना है कहना कि मुमकिन नहीं है मेरा तुम्हारे बिना रहना

दाह-संस्कार

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उम्र में तरुणाई सी छाने लगी थी बचपन से निकल कर मन यौवन की कुलाचें भरने लगा था कई रंगीन सपने उसकी आंखों में पलने लगे थे प्रेम के मोती हृदय की सीपी से बाहर निकलने लगे थे सफेद घोड़े पर बैठा राजकुमार उसे हर पल नजर आता था और आज तो वो राजकुमार उसके सामने था उसे लगा कि उसकी उम्मीदों को आज परवाज मिल गई खो जाना चाहती थी वो उसकी बाहों में पंख लगाकर उड़ जाना चाहती दूर आसमान में फिर एक दिन ले गया वो उसको अपने साथ ये कहकर, कि दूर कहीं हम अपने प्यार का एक जहां बसाएंगे एक-दूसरे से किए हर वादे को ता-उम्र निभाएंगे लेकिन ये क्या, वो तो छोड़ आया उस मासूम लड़की को वहां जहां हर दिन न जाने कितनी लड़कियां बेमौत मरती थीं अभी-अभी तो लड़की के परों में जान आई थी और अभी उसको पिंजड़े में कैद कर दिया सहमी हुई सी लड़की बेचैन निगाहों से  ताक रही थी चिर शून्य आसमान जहां उसे अपना भविष्य काले बादलों में  खोता हुआ नजर आ रहा था हर दिन उसे परोस दिया जाता था  कई अनचाहे मेहमानों के सामने जो पल-पल उसके जिस्म से उसकी सांसे खींच रहे थे नन्ही सी वो कली अब एक जिंदा ला...

मेरे पापा

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दूसरी बेटी होने पर जब सब ने मां को कोसा। पापा ने आगे बढ़कर उस दिन सबको रोका।। पहली बार उन्होंने जब मुझे गोद में उठाया। कहते हैं वो उस दिन को, मैं कभी भुला न पाया।। लड़ती थी मैं उनसे, झगड़ती थी मैं उनसे। बरगद से लता की तरह, लिपटती थी मैं उनसे।। घुटनों के बल चलकर, गोद में मैं चढ़ जाती थी। फलों की आढ़त वाला दूल्हा लाना, कहकर मैं इतराती थी।। मेरे पीछे-पीछे दौड़कर मुझे साइकिल चलाना सिखाया। अपने हर फर्ज को उन्होंने बखूबी निभाया।। मेरे गिरने से पहले ही उन्होंने मुझे संभाला। मेरी हर ख्वाहिश को अपने सपनों सा पाला।। जो कुछ भी मैंने पाया, उनसे ही है पाया। सिर पर पापा का हाथ जैसे तरुवर की है छाया।। दूर रहकर भी मुझसे, दिल से हैं वो मेरे पास। पापा की प्यारी बेटी होने सा नहीं है कोई एहसास।।

एसिड अटैक फाइटर

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एक छोटी लड़की यही कोई 15-16 साल की मस्ती में झूमती, कुछ गाती, गुनगुनाती चली जा रही थी अपनी ही धुन में  उसकी छोटी-छोटी आंखों में  बड़े-बड़े कुछ सपने थे चाहत थी जिंदगी में कुछ करने की खुद को अलहदा साबित करने की कि अचानक सामने से आते एक लड़के ने फेंक दिया उसके ऊपर तेजाब.... जिस से जल गया उसका शरीर और उससे भी कहीं ज्यादा शायद झुलस गया था उसका मन वो जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी और उसके अपराधी खुलेआम सड़कों पर घूम रहे थे लेकिन लड़की ने हिम्मत नहीं हारी खुद को संभाला उसने और एक बार फिर उठ खड़ी हुई अपनी लड़ाई आप लड़ने के लिए कुछ ही समय में उसने दिला दी अपने अपराधियों को सजा और दिखा दिया दुनिया को कि वो  वाकई में है सबसे अलहदा आज फिर उसकी आंखों में  पहले जैसी चमक थी और चेहरे पर रंगत क्योंकि बन गई थी वह  हर लड़की के लिए प्रेरणा स्रोत अब वह एसिड अटैक विक्टिम नहीं एसिड अटैक फाइटर थी। 

हुनर को परवाज देती ब्लॉगिंग

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रचानात्कता एक ऐसी चीज है जो इस दुनिया की बाकी किसी भी चीज से ज्यादा सुकून देती है। या यूं कहा जाए कि आप अपने मन की भावनाओं को अपनी रचनाशीलता से ही कई बार बाहर निकाल पाते हैं। कुछ लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए पेंटिंग बनाते हैं, तो कुछ कविताएं लिखते हैं, कुछ लोग जज्बातों को शेरो-शायरी में पिरो देते हैं और कुछ मुक्तक और छन्द बनाते हैं। दरअसल अपनी भावनाओं को मूर्त रूप देने से ज्यादा सुखद अनुभूति तब होती है जब आपकी रचनाओं को सराहने वाले कोई मिल जाता है। और ऐसा मौका आपको ब्लॉग के जरिए मिलता है। शायद यही वजह है आजकल ब्लॉगिंग युवाओं को बहुत भा रही है। 24 साल की श्रुति को कविताएं लिखना बहुत पसंद है, लेकिन वह अपनी कविताओं को अपनी जान-पहचान के लोगों को पढ़ाने में हिचकिचाती है। उसे लगता है कि अगर उसकी कविता अच्छी नहीं हुई  तो लोग उसका मजाक बनाएंगे। लेकिन वह उसे लोगों के सामने भी लाना चाहती है, ऐसे में उसे खयाल आया कि क्यों न अपना एक ब्लॉग बनाऊं और अपनी सारी कविताओं को उसमें ही डालूं। इस बहाने लोग मेरी कविताओं को पढ़ भी लेंगे। अगर उन्हें मेरी कविता पसंद आई तो मुझे तारीफ मिल जा...

पागल बुढ़िया

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एक बूढ़ी औरत फटे पुराने कपड़े पहने बैठी थी मोहल्ले के एक चबूतरे पर उसके सफेद पके बाल बिखरे हुए थे चेहरे पर अनगिनत झुर्रियां थीं वह बड़-बड़ा रही थी कुछ गली के कुछ बच्चों ने उसे देखा और मारने लगे पत्थर ये कहकर देखो पागल बुढ़िया, देखो पागल बुढ़िया बुढ़िया भागने लगी इधर-उधर बच्चों से बचकर छुप गई एक घर के कोने में लेकिन घर में रहने वाले लोगों ने भी उसे  डंडा दिखाकर भगा दिया वो जमीन पर बैठकर पास पड़े कूड़े में कुछ ढूंढने लगी शायद भूख लग रही थी उसे बहुत तेज तभी मिल गए उसे तरबूज के कुछ छिलके जिसे खोद-खोदकर खाने लगी वो मोहल्ले के कुछ लोग असंवेदनशीलता की हदें पार कर उसे यूं कूड़ा खाता देख हंस रहे थे उस पर  न किसी की आंखों में दया थी और न ही मन में करुणा चेहरे पर थे तो सिर्फ उपेक्षा और उपहास के भाव शायद यही हमारे अत्याधुनिक और  तेजी से विकसित होते समाज की पहली निशानी थी।

भीख मांगता बच्चा

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चौराहे पर खड़ा एक छोटा बच्चा हाथ फैलाकर मांग रहा था किसी से एक किसी से दो  तो किसी से दस रुपये आते-जाते कुछ लोग डाल देते थे उसके कटोरे में कुछ भीख कुछ लोग दे देते थे उसे खाने के लिए  कोई बिस्किट तो कोई नमकीन लेकिन नहीं दे रहा था उसे कोई सीख कि बेटा नहीं तुम्हारी उम्र मांगने की भीख  अभी तो पूरा जीवन है तुम्हारे सामने चाहो तो संवार सकते हो तुम अपनी जिंदगी अपने इन्हीं हाथों से जिनमें तुमने पकड़ा है कटोरा लेकिन इसके लिए तुम्हें बस करनी होगी मेहनत लड़ना होगा अपने हालातों से  समझना होगा कि भीख मांगना ही नहीं है तुम्हारी किस्मत कि तुम ही हो इस देश का भविष्य और नहीं मांगने दोगे तुम भविष्य में इस देश को भीख

भारत और पाकिस्तान

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बहुत से लोग चाहते हैं कि  दो पड़ोसी मुल्क एक-दूसरे से सारे रिश्ते-नाते तोड़ दें तोड़ दें आत्मीयता की सारी जंजीरें वे हमारे दुख में खुश हों और हम उनके दुख में ठहाके लगाएं आखिर हमारी दुश्मनी भी तो कई साल पुरानी है उसे निभाना और आगे बढ़ाना  हमारा ही तो फर्ज है बंद कर दें हम उनके बारे में बात करना यहां रहने वाली बहन का  वहां रहने वाले भाई से मिलना पाबंदी लगा दें सारे रिश्ते और नातों पर आयात और निर्यात पर सिखों के अपने तीर्थ ननकाना साहिब जाने पर ये सब कर लेंगे हम  तोड़ देंगे सारे संबंधों को और बन जाएंगे महान अपनी ही नजरों में लेकिन क्या हम दो देशों में बहने वाले एक ही दरिया के पानी को आपस में मिलने से रोक लेंगे क्या रोक लेंगे हम उस पार की चिड़िया को जो अक्सर सरहद पार कर दाना लेने इधर आ जाती है क्या यहां रहने वाले नाती का वहां रहने वाली  नानी से रिश्ता तोड़ पाएंगे हम क्या लगा पाएंगे हम पाबंदी उन लोगों की यादों पर जिन्होंने वर्षों पहले अपने मुल्क को छोड़ा था शायद नहीं कर पाएंगे ये सब  इस...

धान रोपती औरत

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कभी देखी है तुमने धान रोपती हुई औरत अपने बालों को कपड़े में लपेटकर साड़ी को घुटनों तक चढ़ाकर वो घुस जाती है पानी में और घंटों यूं ही उस पानी में खड़े रहकर रोपती रहती है धान खेत में भरे गंदे पानी से सड़ जाते हैं उसके हाथ और पैर कुछ जोंक भी चिपक जाती हैं उसके पैरों में और भी कई पानी के कीड़े जो चूसते रहते हैं उसका खून फिर भी धान रोपती औरतें अपने लक्ष्य से नहीं भटकतीं और चेहरे पर मुस्कान लिए गाती रहती हैं कजरी इतना दर्द सहने के बाद भी उनके चेहरे पर होती है एक खुशी खुशी इस बात की कि उनकी रोपी हुई फसल बड़ी होकर जब कटेगी तो इसी से उनका  घर चलेगा और खुशी इस बात की उनके धानों से मिलने वाले चावल से न जाने कितनों का पेट भरेगा।।

एक प्रेम का दीप जला जाना

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जब शाम ढले और रात चले तुम मन मन्दिर में आ जाना आकर के तुम उसमें बस एक प्रेम का दीप जला जाना जब अम्बर में बिखरे चांदनी और तारों की बारात सजे सिर मेरा गोद में रखकर तुम अपनी मुझे प्रीत की लोरी सुना जाना जब सुध-बुध अपनी मैं खोऊं और गहरी नींद में मैं सोऊं सुंदर रूप सलोना मुखड़ा तुम ख्वाब में आकर दिखला जाना सुबह जब सूरज सिर पे चढ़े और चिड़ियों की चहचहाहट मन में घुले तुम भीगी जुल्फों के छींटे बरसाकर मुझे नींद से जगा जाना एक प्रेम का दीप जला जाना।।

प्रेम प्रणय की बेला

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प्रेम प्रणय की इस बेला को जी भर कर जीना है अब तुझसे मिलन की उत्कंठा को अविरल जल सा बहना है अब गीत भी होगा रीत भी होगी मीत भी होगा प्रीत भी होगी हृदय में दबी अभिलाषाओं को इक चिड़िया सा उड़ना है अब मां-पापा के दिवा स्वप्न को पुल्कित होते सबके मन को स्वस्रेह से सींचना है अब तुझसे मुझको मुझसे तुझको पवित्र बंधन में बंधना है अब प्रेम प्रणय की इस बेला को जी भर का जीना है अब।।।

मजूदर औरत

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न हूं मैं गार्गी और न ही पद्मावती न मैं कल्पना चावला और न ही इंदिर नुई न हूं मैं झांसी की रानी और न ही विजयलक्ष्मी न मैं मैरी कॉम और न ही अरुंधती मैं हूं एक साधारण सी मजदूर औरत मेरे पास नहीं है रंगीन सपनों का आकाश और न ही नित नई उम्मीदों की जमीन मेरे पास नहीं हैं रुपये अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए हां मेरे पास आकाश है तेज धूप से भरा हुआ और जमीन भी है जिससे मिट्टी खोदकर मुझे छठी मंजिल तक ले जानी है मेरे पास रुपये भी हैं लेकिन अपने भूखे बच्चों का पेट भरने के लिए मुझे नहीं मिली इतनी शिक्षा की मैं सफलता की उड़ान भरूं लेकिन मेरे पास है मेरी मेहनत जिससे अपने बच्चों में अपने सपनों को जी सकूं।

बचपन की यादें

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गर्मी की भरी दुपहरी में जब गांव की गलिया सो जाती थीं आंधी जैसी लू से डरकर चिड़ियां पत्तों में छुप जाती थीं हमें सुलाने की कोशिश में जब नानी खुद सो जाती थीं हम धीरे से उठकर तब बाहर आते थे आम के बाग की ओर तेज दौड़ लगाते थे कभी डंडा तो कभी पत्थर कच्चे आमों पर बरसाते थे हमारी अनगिनत कोशिशों के बाद जब कुछ आम टूटकर गिर जाते थे उन्हें देखकर हम खुशी से फूले नहीं समाते थे नमक-मिर्च लगाकर हम कच्चे आमों को खाते थे हमें देखकर दूसरों के भी दांत खट्टे हो जाते थे फिर खाते थे मम्मी की डांट और दादी के ताने सुनते थे आंखो में मोटे आंसू देखकर पापा हमें मनाते थे अक्सर याद आती हैं बचपन की वे बातें जब लाख डांट पड़ने पर भी हम गलतियां दोहराते थे।

लक्ष्मण रेखा

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तुम्हारे पुरुषत्व के अहंकार पर मैं वारी जाऊं पति हो तुम मेरे तो क्यों न तुम पर सर्वस्व लुटाऊं मां-बाप ने बचपन से सिखाया पति की सेवा करना है तुम्हारा परम धर्म वो कभी समझे या न समझे तुम्हारे दिल का मर्म लेकिन नहीं, मैं हूं आज की सबला नारी जो है हर परिस्थिति और किस्मत पर भारी औरतों के लिए तुम्हारी दोहरी मानसिकता को नहीं कर सकती मैं अनदेखा इसलिए खींच रही हूं मैं तुम्हारे और अपने बीच एक लक्ष्मण रेखा पर एक दिन मैं दूंगी तुम्हें अपना तन, मन और पूरा मान लेकिन तब, जब तुम करोगे तुम पूरे दिल से ‘हर स्त्री’का सम्मान

कुछ कहमुकरियां

देर रात वो मुझको सताए आहट करके मुझको जगाए उसने छीना मेरा चैन ऐ सखि साजन!न सखि वॅाचमैन।। ---------------------- उसको देख के मैं छुप जाऊँ जहां हो वो वहाँ मैं नहीं जाऊँ उसने बानाया मुझे बावली ऐ सखि साजन!न सखि छिपकली।। ----------------------- वो है सबसे भोला-भाला मन का सच्चा और निराला उसके लिए मन में नहीं कोई सवाल ऐ सखि साजन!न सखि केजरीवाल।। ------------------------ जब-जब मैं फोन उठाऊं उसको देख के मैं मुस्काऊं नहीं है उसमें कोई ऐब ऐ सखि साजन!न सखि व्हॅाट्स ऐप।।

तुम 'लड़की' हो

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कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या करती हो, तुम्हारी उम्र क्या है, तुम्हारा पहनावा कैसा है, तुम्हारा रहन-सहन कैसा है, तुम साहसी हो या कमजोर तुम 'लड़की' हो, बस इतना ही काफी है तुम्हारा यौन शोषण होने के लिए।।। कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम अकेली हो तुम्हारा साथ कोई देता या नहीं तुम्हारी खिल्ली उड़ाई जाती है तुम्हारी आलोचना होती है तुम्हें दोयम दर्जे की समझा जाता है फिर भी, तुम 'लड़की' हो और तुम्हारी एक साहस भरी आवाज ही काफी है समाज की विकृत होती मानसिकता को एक सही दिशा दिखाने के लिए।

गुलाल जो बिखरा था राहों में

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रंग और गुलाल जो बिखरा था राहों में आती-जाती भीड़ और उड़ता धूल का गुबार राहों में याद करती उस दिन को जब उससे मिली थी इन्हीं राहों में साथ चलते-चलते छूट गया था हाथ कहीं राहों में देख रही थी वो ख्वाब जो बिखरा था राहों में कर रही थी वो बैठी इंतजार राहों में साथ चलेंगे फिर वे बनकर हमसफर जिंदगी की राहों में