तुम हो या नहीं
नहीं पता है मुझे
लेकिन हर दिन
दिल में एक सवाल
उठता है कि क्या तुम
वाकई में हो और फिर
ढूंढ लेती हूं खुद ही उस
सवाल का जवाब
लेकिन फिर भी मन में
असमंजस सा रह जाता है
जब कोई मरते हुए
बच जाता है तो लगता है
कि हां तुम हो
जब कोई बच्चा बेमौत
मर जाता है
तो लगता है कि तुम
कहीं नहीं हो
जब मिलती है किसी को
उसके गुनाहों की सजा
तो लगता है कि तुम हो
जब देखती हूं अपने
आस-पास की बुराई को
हर दिन जीतते हुए तो
लगता है कि तुम नहीं हो
तुम्हारे होने या न होने पर
कई बार तर्क किए मैंने
कभी खुद से कभी दूसरों से
कई बार मेरे तर्क जीते
और उन्होंने कहा कि तुम नहीं हो
कई बार मेरी आस्था जीती और
उसने कहा कि तुम हो
लेकिन मेरा हर तर्क हार जाता है
जब मैं आइने में देखती हूं खुद को
और सोचती हूं कि गर तुम नहीं हो
तो मैं क्यों हूं, ये शरीर क्यों है,
मेरा वजूद क्यों है और तब मुझे
बस एक ही जवाब मिलता है
कि तुम हो तो ही मेरा वजूद है
तुम हो तो ही ये दुनिया है
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-12-2014) को "कौन सी दस्तक" (चर्चा-1835) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
आप अपना क़ीमती समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर आये और मेरी रचनाओं को पढ़ा इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद।। आप सभी की प्रतिक्रिया मेरे लिए मायने रखती है... आगे भी ऐसे ही आते रहिएगा।।।
Deleteभावोम की सहजता
ReplyDeleteशब्दों का चयन
सतीक बन पडा है.
यही भावना हर इंसान के मन में है ,हमेशा से रहा है ,हमेशा रहेगा, संशय में ही हर एक जीवन समाप्त होगा !---सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete: पेशावर का काण्ड
तुम हो तो मेरा वजूद है, तुम हो तोयह दुनिया है। यही है अनुभूत सत्य।
ReplyDeleteकि तुम हो तो ही मेरा वजूद है
ReplyDeleteतुम हो तो ही ये दुनिया है
...यही अनुभूति ही तो स्वीकृति है उसके अस्तित्व की आस्था की...बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..
behad umda....aaj hum behad din me aaye shayad aap bhi...khair likhate rahiye..yu hi shubhkamnayein..
ReplyDeleteखुद के अस्तित्व को दूसरे के बजूद में तलाशती...अद्भुत अहसास लिये सुंदर कविता।
ReplyDeleteउसका वजूद तो है हर जगह है ... और किसी न किसी तरह वो मनवा भी देता है उसका एहसास ... दुःख या ख़ुशी के माध्यम से ...
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