तुम हो या नहीं
नहीं पता है मुझे
लेकिन हर दिन
दिल में एक सवाल
उठता है कि क्या तुम
वाकई में हो और फिर
ढूंढ लेती हूं खुद ही उस
सवाल का जवाब
लेकिन फिर भी मन में
असमंजस सा रह जाता है
जब कोई मरते हुए
बच जाता है तो लगता है
कि हां तुम हो
जब कोई बच्चा बेमौत
मर जाता है
तो लगता है कि तुम
कहीं नहीं हो
जब मिलती है किसी को
उसके गुनाहों की सजा
तो लगता है कि तुम हो
जब देखती हूं अपने
आस-पास की बुराई को
हर दिन जीतते हुए तो
लगता है कि तुम नहीं हो
तुम्हारे होने या न होने पर
कई बार तर्क किए मैंने
कभी खुद से कभी दूसरों से
कई बार मेरे तर्क जीते
और उन्होंने कहा कि तुम नहीं हो
कई बार मेरी आस्था जीती और
उसने कहा कि तुम हो
लेकिन मेरा हर तर्क हार जाता है
जब मैं आइने में देखती हूं खुद को
और सोचती हूं कि गर तुम नहीं हो
तो मैं क्यों हूं, ये शरीर क्यों है,
मेरा वजूद क्यों है और तब मुझे
बस एक ही जवाब मिलता है
कि तुम हो तो ही मेरा वजूद है
तुम हो तो ही ये दुनिया है