लड़कियों की जिंदगी

बेमानी हैं लड़कियों की बराबरी की बातें खोखले हैं समाज के सारे दावे आज भी जकड़ी हुई हैं वो रूढ़ियों की जंजीरो में जैसे सपने में भागते हैं हम और बार-बार कोशिश करने पर गिर जाते हैं नहीं पहुंच पाते अपनी मंजिल तक बिल्कुल उसी सपने की तरह होती है लड़कियों की जिंदगी अपने अरमानों को पूरा करने के लिए करती हैं वो भी बार-बार कोशिश लेकिन कभी समाज की दुहाई देकर कभी मां-बाप की इज्जत की दलील देकर बांध दी जाती हैं उनके पैरों में उन्हीं पुरानी परंपराओं की बेड़ियां लाख कोशिश करने पर भी हजार बार गिर कर संभलने पर भी नहीं पहुंच पातीं वो अपनी मंजिल तक और 'खुले विचारों वाली’ लड़कियां भी घुट कर रह जाती हैं अंदर ही अंदर झूठी शान की कोठरी में