तुम्हारे पुरुषत्व के अहंकार पर मैं वारी जाऊं
पति हो तुम मेरे तो क्यों न तुम पर सर्वस्व लुटाऊं
मां-बाप ने बचपन से सिखाया
पति की सेवा करना है तुम्हारा परम धर्म
वो कभी समझे या न समझे तुम्हारे दिल का मर्म
लेकिन नहीं, मैं हूं आज की सबला नारी
जो है हर परिस्थिति और किस्मत पर भारी
औरतों के लिए तुम्हारी दोहरी मानसिकता
को नहीं कर सकती मैं अनदेखा
इसलिए खींच रही हूं मैं तुम्हारे और
अपने बीच एक लक्ष्मण रेखा
पर एक दिन
मैं दूंगी तुम्हें अपना तन, मन और पूरा मान
लेकिन तब, जब तुम करोगे तुम
पूरे दिल से ‘हर स्त्री’का सम्मान