प्रेम प्रणय की इस बेला को
जी भर कर जीना है अब
तुझसे मिलन की उत्कंठा को
अविरल जल सा बहना है अब
गीत भी होगा रीत भी होगी
मीत भी होगा प्रीत भी होगी
हृदय में दबी अभिलाषाओं को
इक चिड़िया सा उड़ना है अब
मां-पापा के दिवा स्वप्न को
पुल्कित होते सबके मन को
स्वस्रेह से सींचना है अब
तुझसे मुझको मुझसे तुझको
पवित्र बंधन में बंधना है अब
प्रेम प्रणय की इस बेला को
जी भर का जीना है अब।।।