एक नन्ही सी कली के टूटे-फूटे स्वर
जैसे ही सधकर निकलना शुरू होते हैं
तभी से उसे चुप रहने का पाठ पढ़ाया जाता है
चुप रहना ही है लड़कियों का गहना
उन्हें यह समझाया जाता है
जैसे-जैसे वे बड़ी होती जाती हैं
उनके बोलने पर बंदिशे बढ़ती जाती हैं
तुम चुप रहो, लड़कियां ज्यादा बोलते हुए
अच्छी नहीं लगतीं, ये कहकर
बंद करा दिया जाता है उनका मुंह
और बाहर निकलने को बेताब उनके शब्द
अंदर ही घुटकर तोड़ देते हैं अपना दम
जब भी वे कोशिश करती हैं कुछ बोलने की
उनके सामने पेश कर दिये जाते हैं
कई ऐसी लड़कियों के उदाहरण
जिनके कम बोलने से ही उनके
अच्छा होने की सार्थकता सिद्ध होती है
कभी नहीं बोल पातीं वे
पहले बाप के डर से, समाज के डर से
फिर कभी पति के डर से, कभी सास के डर से
एक दिन सोचा मैंने कि क्या करती हैं
आखिर वे अपने अनकहे शब्दों का
शायद सहेजती रहती होंगी उन्हें और
गुंथकर बना लेती होंगी उनकी एक माला
फिर जब इस दुनिया को छोड़ वे
चली जाती होंगी दूसरी दुनिया में
तब श्रद्धांजली स्वरूप अपनी लाश पर
चढ़ा लेती होंगी अपने ही शब्दों की माला
फिर शब्द भी बिखर जाते होंगे स्वछंद हवा में
ये सोचकर कि कभी तो कोई स्त्री आएगी
जो अपने स्वरों में पिरोकर हमें पूरी दुनिया को सुनाएगी
अपना डर खत्म करना होगा और बोल्न होगा क्योंकि अब समय चुप रहने का नहीं है।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना।
सादर
सही कहा आपने अब समय खुलकर बोलने का है चुप रहने का नहीं
Deleteसादर आभार
बहुत ही खूबसूरत भाव लिए है है ये रचना। पैदाइश के पहले भी और जीवन भर उसे अपने शब्दों को पीकर जिन पड़ता है. समाज को सोचने पर मजबूर करती है ये पंक्तियाँ
ReplyDeleteआखिर वे अपने अनकहे शब्दों का
शायद सहेजती रहती होंगी उन्हें और
गुंथकर बना लेती होंगी उनकी एक माला
फिर जब इस दुनिया को छोड़ वे
चली जाती होंगी दूसरी दुनिया में
तब श्रद्धांजली स्वरूप अपनी लाश पर
चढ़ा लेती होंगी अपने ही शब्दों की माला
फिर शब्द भी बिखर जाते होंगे स्वछंद हवा में
ये सोचकर कि कभी तो कोई स्त्री आएगी
जो अपने स्वरों में पिरोकर हमें पूरी दुनिया को सुनाएगी
शुक्रिया स्मिता
Deleteतुम चुप रहो, लड़कियां ज्यादा बोलते हुए
ReplyDeleteअच्छी नहीं लगतीं, ये कहकर
बंद करा दिया जाता है उनका मुंह
और बाहर निकलने को बेताब उनके शब्द.........................वास्तविकता से अवगत करते हुए..............
धन्यवाद प्रभात जी
Deleteमर्म को छूते शब्द ... अक्सर लड़कियों के साथ बचपन से ही ऐसा होता है ...
ReplyDeleteइस परिपाटी को तोडना होगा ... लड़कियों को ये वर्जनाएं तोडनी होंगी ...
सही कहा आपने लड़कियों वर्जनाएं तोड़नी होंगी
Deleteधन्यवाद सादर
बोलना जरूरी है ।
ReplyDeleteजी सुशील जी बोलना ही होगा
Deleteबहुत ही सुंदर सार्थक और बहुत कुछ सिखाती समझाती चेताती रचना ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसादर
कल 08/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
मर्म को छूते शब्द ...
ReplyDeleteधन्यवाद मैम
Deleteसार्थक ...मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद मैम
ReplyDeleteअच्छी कविता ... नारी उत्पीड़न एवं भारतीय समाज मे नारी के प्रति किए जा रहे बर्ताव को दर्शाती सुंदर रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसादर
ये ज़ंजीरें अब स्वयं ही तोड़नी होंगी...बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteहाँ कैलाश जी
Deleteमहिलाओं को अपनी जज़ीरें खुद ही तोड़नी होंगी
सादर आभार
बहुत ही सुंदर और सार्थक .......
ReplyDeleteबढ़िया सुंदर लेखन व बढ़िया ब्लॉग , अनुषा जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आखिर अपने मर्म को कब तक दबाती रहेगी बिटिया , बोलना तो होगा ही , यह बहुत जरुरी है
ReplyDeleteसच कहा आपने बेटियों का बोलना भी उतना ही जरूरी है जितना बाकी सब का ।।
DeleteDil ki taar ko hilaate hue guzare aapki rachna k har shabd Anusha ji... Shubhkamnayein dhero...
ReplyDeleteThankyou pari ji
Deleteमन की भावनाओं का दरिया बह चला इस कविता के माध्यम से. सुंदर प्रस्तुति. बधाई....!!!
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