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Sunday, December 21, 2014

मैं क्यों हूं

तुम हो या नहीं
नहीं पता है मुझे
लेकिन हर दिन 
दिल में एक सवाल 
उठता है कि क्या तुम 
वाकई में हो और फिर 
ढूंढ लेती हूं खुद ही उस
सवाल का जवाब 
लेकिन फिर भी मन में 
असमंजस सा रह जाता है

जब कोई मरते हुए
बच जाता है तो लगता है
कि हां तुम हो
जब कोई बच्चा बेमौत 
मर जाता है
तो लगता है कि तुम 
कहीं नहीं हो
जब मिलती है किसी को
उसके गुनाहों की सजा
तो लगता है कि तुम हो
जब देखती हूं अपने 
आस-पास की बुराई को
हर दिन जीतते हुए तो
लगता है कि तुम नहीं हो

तुम्हारे होने या न होने पर
कई बार तर्क किए मैंने
कभी खुद से कभी दूसरों से
कई बार मेरे तर्क जीते 
और उन्होंने कहा कि तुम नहीं हो
कई बार मेरी आस्था जीती और
उसने कहा कि तुम हो

लेकिन मेरा हर तर्क हार जाता है
जब मैं आइने में देखती हूं खुद को
और सोचती हूं कि गर तुम नहीं हो
तो मैं क्यों हूं, ये शरीर क्यों है, 
मेरा वजूद क्यों है और तब मुझे
बस एक ही जवाब मिलता है
कि तुम हो तो ही मेरा वजूद है
तुम हो तो ही ये दुनिया है 

10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-12-2014) को "कौन सी दस्तक" (चर्चा-1835) पर भी होगी।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
    हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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    1. आप अपना क़ीमती समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर आये और मेरी रचनाओं को पढ़ा इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद।। आप सभी की प्रतिक्रिया मेरे लिए मायने रखती है... आगे भी ऐसे ही आते रहिएगा।।।

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  3. भावोम की सहजता
    शब्दों का चयन
    सतीक बन पडा है.

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  4. यही भावना हर इंसान के मन में है ,हमेशा से रहा है ,हमेशा रहेगा, संशय में ही हर एक जीवन समाप्त होगा !---सुन्दर प्रस्तुति
    : पेशावर का काण्ड

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  5. तुम हो तो मेरा वजूद है, तुम हो तोयह दुनिया है। यही है अनुभूत सत्य।

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  6. कि तुम हो तो ही मेरा वजूद है

    तुम हो तो ही ये दुनिया है
    ...यही अनुभूति ही तो स्वीकृति है उसके अस्तित्व की आस्था की...बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..

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  7. behad umda....aaj hum behad din me aaye shayad aap bhi...khair likhate rahiye..yu hi shubhkamnayein..

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  8. खुद के अस्तित्व को दूसरे के बजूद में तलाशती...अद्भुत अहसास लिये सुंदर कविता।

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  9. उसका वजूद तो है हर जगह है ... और किसी न किसी तरह वो मनवा भी देता है उसका एहसास ... दुःख या ख़ुशी के माध्यम से ...

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