तन्हाई हमें खामोश रहकर बहुत कुछ बताती है
खमोशी अक्सर तन्हाई में धुन कोई गुनगुनाती है
हौले-हौले दबे पांव से दिल में जब तू आती है
तेरे चेहरे की रंगत तब सुर्ख लाल हो जाती है
पायल की छन-छन भी तेरी कोई राग सुनाती है
झुकती उठती पलकें तेरी बेकरार कर जाती हैं
हाथों के कंगन जब तू खन-खन-खन खनकाती है
मन में मेरे प्रेम की एक धारा सी बह जाती है
प्यारी तेरी बोली इतनी मेरा मन भरमाती है
तुझमें ही खो जाऊं मैं चुपके से कह जाती है
बंद आंखों से तू हर जगह नजर मुझे आती है
आंखें खोलूं तो न जाने क्यूं ओझल तू हो जाती है
एक दिन होगी तू मेरी हर तन्हाई यही बताती है
खामोशी भी तन्हाई में प्रीत की धुन ही गाती है
ख़ामोशी बोलती भी गुनगुनाती भी है ........सुन्दर अहसाह
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आभार मधु जी
Deleteसुंदर ।
ReplyDeleteधन्यवाद जोशी जी
Deletewah bahut sundar
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteहौले-हौले दबे पांव से दिल में जब तू आती है
ReplyDeleteतेरे चेहरे की रंगत तब सुर्ख लाल हो जाती है
......लाज़वाब....दिल को छूते बहुत कोमल अहसास...!!
बहुत आभार संजय जी
Deleteशुक्रिया यशवंत जी
ReplyDeleteखुबसुरत.........
ReplyDeleteवाह। क्या बात है।
ReplyDeleteबेहतरीन एहसास
सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर अहसास.
ReplyDeleteहाथों के कंगन जब तू खन-खन-खन खनकाती है
ReplyDeleteमन में मेरे प्रेम की एक धारा सी बह जाती है ..
प्रेम के कुछ अनछुए पहलुओं को लेकर बुनी ग़ज़ल ... बहुत ही लाजवाब ...
आभार नासवा जी
Deleteश्रृंगार रस कुछ ऐसा भी!
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आभार माहेश्वरी जी
Deleteप्यारी तेरी बोली इतनी मेरा मन भरमाती है
ReplyDeleteतुझमें ही खो जाऊं मैं चुपके से कह जाती है
खूबसूरत पंक्तियाँ
bahut hi khubsurat preet ki dhun
ReplyDeletebahut hi khubsurat preet ki dhun
ReplyDeleteप्यारी तेरी बोली इतनी मेरा मन भरमाती है
ReplyDeleteतुझमें ही खो जाऊं मैं चुपके से कह जाती है( सुंदर प्रस्तुति !)