न हूं मैं गार्गी और न ही पद्मावती
न मैं कल्पना चावला और न ही इंदिर नुई
न हूं मैं झांसी की रानी और न ही विजयलक्ष्मी
न मैं मैरी कॉम और न ही अरुंधती
मैं हूं एक साधारण सी मजदूर औरत
मेरे पास नहीं है रंगीन सपनों का आकाश
और न ही नित नई उम्मीदों की जमीन
मेरे पास नहीं हैं रुपये अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए
हां मेरे पास आकाश है तेज धूप से भरा हुआ
और जमीन भी है जिससे मिट्टी खोदकर
मुझे छठी मंजिल तक ले जानी है
मेरे पास रुपये भी हैं लेकिन अपने भूखे बच्चों का पेट भरने के लिए
मुझे नहीं मिली इतनी शिक्षा की मैं सफलता की उड़ान भरूं
लेकिन मेरे पास है मेरी मेहनत जिससे अपने बच्चों में
अपने सपनों को जी सकूं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (24-05-2014) को "सुरभित सुमन खिलाते हैं" (चर्चा मंच-1622) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए शुक्रिया....
ReplyDeletebahut sundar rachna
ReplyDeleteबेहतरीन सोच वाली रचना
ReplyDeleteस्पेलिंग मिसटेक हैं, टाइपिंग से हुआ शायद !
कल 25/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
Sundar , Sahaj Dil se likhi rachana ke liye Sadhuvad
ReplyDeleteसादर आमंत्रित है
www.whoistarun.blogspot.in
बहुत सुंदर, भाव भीनी कविता।
ReplyDeleteमनोभावों को व्यक्त करती सुन्दर रचना
ReplyDeleteआप सबका बहुत आभार
ReplyDeleteशुक्रिया यशवंत जी
ReplyDeleteवाह क्या खूब लिखा है
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