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Saturday, April 19, 2014

कुछ कहमुकरियां

देर रात वो मुझको सताए
आहट करके मुझको जगाए
उसने छीना मेरा चैन
ऐ सखि साजन!न सखि वॅाचमैन।।
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उसको देख के मैं छुप जाऊँ
जहां हो वो वहाँ मैं नहीं जाऊँ
उसने बानाया मुझे बावली
ऐ सखि साजन!न सखि छिपकली।।
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वो है सबसे भोला-भाला
मन का सच्चा और निराला
उसके लिए मन में नहीं कोई सवाल
ऐ सखि साजन!न सखि केजरीवाल।।
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जब-जब मैं फोन उठाऊं
उसको देख के मैं मुस्काऊं
नहीं है उसमें कोई ऐब
ऐ सखि साजन!न सखि व्हॅाट्स ऐप।।

5 comments:

  1. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - रे मुसाफ़िर चलता ही जा पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  2. आप सबका बहुत आभार

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