गर्मी की भरी दुपहरी में
जब गांव की गलिया सो जाती थीं
आंधी जैसी लू से डरकर
चिड़ियां पत्तों में छुप जाती थीं
हमें सुलाने की कोशिश में
जब नानी खुद सो जाती थीं
हम धीरे से उठकर तब बाहर आते थे
आम के बाग की ओर तेज दौड़ लगाते थे
कभी डंडा तो कभी पत्थर
कच्चे आमों पर बरसाते थे
हमारी अनगिनत कोशिशों के बाद
जब कुछ आम टूटकर गिर जाते थे
उन्हें देखकर हम खुशी से फूले नहीं समाते थे
नमक-मिर्च लगाकर हम कच्चे आमों को खाते थे
हमें देखकर दूसरों के भी दांत खट्टे हो जाते थे
फिर खाते थे मम्मी की डांट
और दादी के ताने सुनते थे
आंखो में मोटे आंसू देखकर पापा हमें मनाते थे
अक्सर याद आती हैं बचपन की वे बातें
जब लाख डांट पड़ने पर भी हम
गलतियां दोहराते थे।
आपका बहुत आभार तुषार जी...
ReplyDeleteबचपन की वीथियों में सैर करा दी आपने .....
ReplyDeleteशुक्रिया निवेदिता जी... :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत सुंदर, भावनात्मक रचना । बधाई आपको ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और भावमय अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवाह। क्या बचपन था वो सुन्दर प्यारा प्यारा।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
Bachpn ka khoobshurat sansar
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए आभार
Deleteभोले बचपन से जुडी खट्टी मीठी आम की कैरियों की मीठी मधुर यादें ! बहुत प्यारी रचना !
ReplyDeleteसादर आभार
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