कुछ नहीं चाहिए मुझे
सिवाय तुम्हारे प्यार के
तुम्हारा प्यार ही है
मेरी जिंदगी की आखिरी मंजिल
यूं तो कोई कमी नहीं है मेरे जीवन में
लेकिन कहीं कुछ अधूरा सा है
जो हर पल सालता है मुझे
सिर्फ तुम ही कर सकते हो
इस अधूरेपन को दूर
और मुझे सम्पूर्ण
इतनी इल्तजा है मेरी तुमसे
कि आ जाओ तुम मेरे पास
मैं जीवन भर
रहना चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारी हर खुशी को अपनी
खुशी बनाऊंगी मैं और
तुम्हारे हर गम को
पूरे दिल से अपनाऊंगी मैं
खयाल रखूंगी तुम्हारी
हर पसंद-नापसंद का
मैं हर वो काम करूंगी
जो तुम्हें पसंद हो
जानती हूं मैं कि
तुम्हें नहीं पसंद
कि कोई हर बात पर
तुम्हारी हां में हां मिलाए
लेकिन ये गुलामी नहीं होगी
समर्पण होगा मेरा तुम्हारे लिए
इतना प्यार जो करती हूं तुमसे
मैं नहीं बनना चाहती महान
कि अपने प्यार से दूर रहकर
बिता दूं पूरा जीवन
मुझे हर दिन तुम्हारा प्यार चाहिए
और हर पल तुम्हारा साथ
कि सात वचनों, सात फेरों से
सात जन्मों के लिए
जोड़ना चाहती हूं मैं तुमसे बंधन
और तुम्हारी हर सांस से मैं
जीना चाहती हूं अपना जीवन
सिवाय तुम्हारे प्यार के
तुम्हारा प्यार ही है
मेरी जिंदगी की आखिरी मंजिल
यूं तो कोई कमी नहीं है मेरे जीवन में
लेकिन कहीं कुछ अधूरा सा है
जो हर पल सालता है मुझे
सिर्फ तुम ही कर सकते हो
इस अधूरेपन को दूर
और मुझे सम्पूर्ण
इतनी इल्तजा है मेरी तुमसे
कि आ जाओ तुम मेरे पास
मैं जीवन भर
रहना चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारी हर खुशी को अपनी
खुशी बनाऊंगी मैं और
तुम्हारे हर गम को
पूरे दिल से अपनाऊंगी मैं
खयाल रखूंगी तुम्हारी
हर पसंद-नापसंद का
मैं हर वो काम करूंगी
जो तुम्हें पसंद हो
जानती हूं मैं कि
तुम्हें नहीं पसंद
कि कोई हर बात पर
तुम्हारी हां में हां मिलाए
लेकिन ये गुलामी नहीं होगी
समर्पण होगा मेरा तुम्हारे लिए
इतना प्यार जो करती हूं तुमसे
मैं नहीं बनना चाहती महान
कि अपने प्यार से दूर रहकर
बिता दूं पूरा जीवन
मुझे हर दिन तुम्हारा प्यार चाहिए
और हर पल तुम्हारा साथ
कि सात वचनों, सात फेरों से
सात जन्मों के लिए
जोड़ना चाहती हूं मैं तुमसे बंधन
और तुम्हारी हर सांस से मैं
जीना चाहती हूं अपना जीवन
न सिर्फ प्रेम की चाह ... उसे भरपूर जीने की भी चाह ... खुसी ख़ुशी ... नही मंजूर कोई दूरी ...
ReplyDeleteजो तुमको हो पसंद वाही बात करेंगे ...
सुंदर भाव ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (03-11-2014) को "अपनी मूर्खता पर भी होता है फख्र" (चर्चा मंच-1786) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut khoob anusha..
ReplyDeleteप्रेम और साथ अगर दोनों मिल जाएँ तो जन्नत मिल गई समझो ...भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteBahut sunder ahsaas ki rachna ... Anusha ji .. Lajawaab !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी अहसास....
ReplyDeleteप्रेम की खूबसूरत अभिव्यक्ति.....
ReplyDelete:-)