दूसरी बेटी होने पर जब सब ने मां को कोसा।
पापा ने आगे बढ़कर उस दिन सबको रोका।।
पहली बार उन्होंने जब मुझे गोद में उठाया।
कहते हैं वो उस दिन को, मैं कभी भुला न पाया।।
लड़ती थी मैं उनसे, झगड़ती थी मैं उनसे।
बरगद से लता की तरह, लिपटती थी मैं उनसे।।
घुटनों के बल चलकर, गोद में मैं चढ़ जाती थी।
फलों की आढ़त वाला दूल्हा लाना, कहकर मैं इतराती थी।।
मेरे पीछे-पीछे दौड़कर मुझे साइकिल चलाना सिखाया।
अपने हर फर्ज को उन्होंने बखूबी निभाया।।
मेरे गिरने से पहले ही उन्होंने मुझे संभाला।
मेरी हर ख्वाहिश को अपने सपनों सा पाला।।
जो कुछ भी मैंने पाया, उनसे ही है पाया।
सिर पर पापा का हाथ जैसे तरुवर की है छाया।।
दूर रहकर भी मुझसे, दिल से हैं वो मेरे पास।
पापा की प्यारी बेटी होने सा नहीं है कोई एहसास।।
बचपन की याद ताज़ा कराते खूबसूरत एहसास !
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया यशवंत जी
Deleteसादर
बहुत भावपूर्ण रचना...शुभकामनायें!
ReplyDeleteआपका आभार
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ReplyDeleteबेहतरीन भाव पापा के लिए। पापा तो बस पापा ही होते हैं यार।
ReplyDeleteहाँ स्मिता सही कहा
Deleteशुक्रिया
मन को छूने वाले भाव ....
ReplyDeleteधन्यवाद मोनिका जी...
Deleteसुन्दर सन्देश पितृ दिवस पर...
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteपितृ दिवस पर बेहद भावुक व मर्मस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteआपका शुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteशुकिया
Deleteबहुत खूब...... बहुत अच्छा लगा पढ़कर!
ReplyDeleteसभी रचनाएँ भाव प्रधान हैं !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद देवदत्त जी
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