सच है एक डोर जैसी तो होती है हमारी जिंदगी
एक डोर की सारी खूबियां होती हैं इसमें
कभी रेशम की डोर जैसी सरल और सहज
लेकिन जरा सी लापरवाही से उलझ जाने वाली
कभी ऊन की डोर जैसी मोटी और सख्त
लेकिन दूसरों की जिंदगी में इंद्रधनुषी रंग भरने वाली
कभी एंकर के धागे जैसी थोड़ी मुलायम और कुछ कठोर
पर बेकार से एक जिस्म पर प्रेम के बेल-बूटे गढ़ने वाली
कभी पतंग के मांझे जैसी तेज-तर्रार और पैनी
लेकिन लक्ष्य से दूर होते ही अस्तित्वविहीन होने वाली
कभी सूत के धागे जैसी सफेद और चमकदार
सबकी जिंदगी में धवल चांदनी बिखेरने वाली
कभी बान की डोर जैसी मजबूत और जिद्दी
अपने बारम्बार प्रयास से सिल पर निशान डाल देने वाली
कभी कपड़े सुखाने वाली डोर जैसी सहनशील
अथाह बोझ सहकर भी आह न करने वाली
सच है एक डोर जैसी ही तो है हमारी जिंदगी
चाहे कितनी ही गुण समा ले अपने अंदर
बन जाए चाहे कितनी ही मजबूत और सहनशील
लेकिन एक तेज झटके से जैसे टूट जाती है डोर
वैसे ही एक झटके में सांसों का साथ छोड़कर
देह को निर्जीव कर देने वाली
कभी ऊन की डोर जैसी मोटी और सख्त
ReplyDeleteलेकिन दूसरों की जिंदगी में इंद्रधनुषी रंग भरने वाली
डोर सी उलझती सुलझती ज़िन्दगी.... सुन्दर पंक्तियाँ
बहुत आभार मोनिका जी
Deleteकभी बान की डोर जैसी मजबूत और जिद्दी
ReplyDeleteअपने बारम्बार प्रयास से सिल पर निशान डाल देने वाली
वाह बहुत ही बढ़िया रचना
बहुत आभार स्मिता जी
Deleteकभी पतंग के मांझे जैसी तेज-तर्रार और पैनी
ReplyDeleteलेकिन लक्ष्य से दूर होते ही अस्तित्वविहीन होने वाली।
बहुत गंभीर।
नई रचना: इंसान
शुक्रिया राहुल जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजिंदगी
ReplyDeleteकभी ठोस तो कभी तरल
कभी सुधा तो कभी गरल
कभी सघन तो कभी विरल
वाष्प सरीखे उड़ता रहता
कभी नए परिधान पहनता
कभी रूप परिवर्तन करता
आना जाना एक सत्य है
चलता रहता है नित अविरल
(अज़ीज़ साहब की चंद पंक्तियाँ )
बहुत बढ़िया मधु जी
Deleteबढ़िया प्रस्तुति !
ReplyDeleteअच्छे दिन आयेंगे !
सावन जगाये अगन !
आभार कालीपद जी
Deleteबहुत आभार कुलदीप जी
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकभी बान की डोर जैसी मजबूत और जिद्दी
ReplyDeleteअपने बारम्बार प्रयास से सिल पर निशान डाल देने वाली
कभी कपड़े सुखाने वाली डोर जैसी सहनशील
अथाह बोझ सहकर भी आह न करने वाली
....वाह..बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
बहुत बहुत आभार
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-07-2014 को चर्चा मंच पर { चर्चा - 1691 }ओ काले मेघा में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : अंखियां च तू वसदा
धन्यवाद
Deletesarthak abhivyakti...
ReplyDeletethankyou
Deleteकभी पतंग के मांझे जैसी तेज-तर्रार और पैनी
ReplyDeleteलेकिन लक्ष्य से दूर होते ही अस्तित्वविहीन होने वाली
सुन्दर
बहुत आभार
Deleteवैसे ही एक झटके में सांसों का साथ छोड़कर
ReplyDeleteदेह को निर्जीव कर देने वाली
....वाह..बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
जिंदगी की ये डोर बंधी रहे एक आशा के साथ हमेशा हमेशा ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना है ...
बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteआपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 1 . 8 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteउम्दा ...
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार
Deleteकभी ऊन की डोर जैसी मोटी और सख्त
ReplyDeleteलेकिन दूसरों की जिंदगी में इंद्रधनुषी रंग भरने वाली
बेहतरीन ...
सादर धन्यवाद
Deleteसुंदर परिकल्पना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
Deleteबहुत ही बढियां संज्ञान दिया आपने ज़िंदगी को
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना रची है। बधाई
धन्यवाद
Deleteसादर
लाजबाब अभिव्यक्ति है आपकी
ReplyDeleteआभार विभा जी
Deleteसच कहती पंक्तियाँ .
ReplyDeleteRecent Post …..विषम परिस्थितियों में छाप छोड़ता लेखन -- कविता रावत :)
आभार संजय जी
Deletesunder aur sateek bimbo se apni baat kahi. sashakt lekhan.
ReplyDeleteआभार अनामिका जी
Deleteडोर से बंधी जिंदगी ...........बेहतरीन !!
ReplyDeleteआभार मुकेश जी
Deleteबढ़िया कल्पनाशीलता , मंगलकामनाएं !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सतीश जी
Deleteकभी रेशम की डोर जैसी सरल और सहज
ReplyDeleteलेकिन जरा सी लापरवाही से उलझ जाने वाली-----
जीवन के यथार्थ से परिचित कराती और मानवीय संवेदनाओं को
अभिव्यक्त करती सुन्दर रचना
अदभुत
बधाई ---
आग्रह है ------मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
आवाजें सुनना पड़ेंगी -----
सादर धन्यवाद खरे जी
Deleteजिंदगी को दर्शाती बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
Deleteसादर धन्यवाद
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