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Showing posts from June, 2014

तुम्हारा नाम लिखेंगे

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मुकद्दर-ए-दस्त के हर सफे पे तुम्हारा नाम लिखेंगे तुम्हीं से आगाज और तुम्हीं से अपना अंजाम लिखेंगे याद आएगी जब तुम्हारी तुम्हें पैगाम लिखेंगे खत में तुम्हें हम अपना सलाम लिखेंगे और फिर उसमें लफ्ज-ए-मोहब्बत तमाम लिखेंगे दूर तुम्हें हम खुद से कभी होने नहीं देंगे अपनी चाहत को हम कभी खोने नहीं देंगे हमारे दरमियां कभी फासलों को आने नहीं देंगे जर्रे-जर्रे पे अपने इश्क का कलाम लिखेंगे मुकद्दर-ए-दस्त के हर सफे पे तुम्हारा नाम लिखेंगे जहां की सारी खुशियों को तुम्हारे दामन में भर देंगे दिल अपना निकालकर तुम्हारे कदमों में रख देंगे आंसू का एक कतरा भी आंखों से गिरने नहीं देंगे आशिकी की किताब में खुद को तुम्हारा गुलाम लिखेंगे मुकद्दर-ए-दस्त के हर सफे पे तुम्हारा नाम लिखेंगे

बस इतना है कहना

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बहुत कुछ अनकहा है मेरे और तुम्हारे बीच बहुत कुछ है जो कहना चाहती हूं मैं तुमसे बताना चाहती हूं तुम्हें कि तुम्हारे होने से ही  मुझे अपनी धड़कनोें का एहसास होता है तुम्हारी एक धीमी सी मुस्कारहट भी  मुझमें नई ऊर्जा का संचार कर जाती है तुम्हारा मुझसे ये कहना कि  नहीं रह सकते तुम मेरे बिना मेरे वजूद को और मजबूत बना देता है जब कोई करता है तुम्हारी तारीफ तो मुझे खुद पर गर्व का अनुभव होता है जब तुम मेरा हाथ पकड़ते हो तो लगता है  कि जीवन का हर युद्ध हैं जीत जाऊंगी तुम्हारा साथ मुझे जेठ की दुपहरी में भी ठंडक सा दे जाता है तुमसे दूर होने का खयाल भी मुझे भीड़ में तन्हा कर जाता है तुम्हारी आंखों में चाहत की वो शिद्दत देखकर तुम पर फना हो जाने को जी चाहता है तुम्हारे बिना गुजारे कुछ पल भी मुझे  सदियों से लम्बे लगते हैं और तुम्हारे साथ बिताए कई घंटे  मिनटों में बदल जाते हैं अब मुझे तुमसे बस इतना है कहना कि मुमकिन नहीं है मेरा तुम्हारे बिना रहना

दाह-संस्कार

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उम्र में तरुणाई सी छाने लगी थी बचपन से निकल कर मन यौवन की कुलाचें भरने लगा था कई रंगीन सपने उसकी आंखों में पलने लगे थे प्रेम के मोती हृदय की सीपी से बाहर निकलने लगे थे सफेद घोड़े पर बैठा राजकुमार उसे हर पल नजर आता था और आज तो वो राजकुमार उसके सामने था उसे लगा कि उसकी उम्मीदों को आज परवाज मिल गई खो जाना चाहती थी वो उसकी बाहों में पंख लगाकर उड़ जाना चाहती दूर आसमान में फिर एक दिन ले गया वो उसको अपने साथ ये कहकर, कि दूर कहीं हम अपने प्यार का एक जहां बसाएंगे एक-दूसरे से किए हर वादे को ता-उम्र निभाएंगे लेकिन ये क्या, वो तो छोड़ आया उस मासूम लड़की को वहां जहां हर दिन न जाने कितनी लड़कियां बेमौत मरती थीं अभी-अभी तो लड़की के परों में जान आई थी और अभी उसको पिंजड़े में कैद कर दिया सहमी हुई सी लड़की बेचैन निगाहों से  ताक रही थी चिर शून्य आसमान जहां उसे अपना भविष्य काले बादलों में  खोता हुआ नजर आ रहा था हर दिन उसे परोस दिया जाता था  कई अनचाहे मेहमानों के सामने जो पल-पल उसके जिस्म से उसकी सांसे खींच रहे थे नन्ही सी वो कली अब एक जिंदा ला...

मेरे पापा

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दूसरी बेटी होने पर जब सब ने मां को कोसा। पापा ने आगे बढ़कर उस दिन सबको रोका।। पहली बार उन्होंने जब मुझे गोद में उठाया। कहते हैं वो उस दिन को, मैं कभी भुला न पाया।। लड़ती थी मैं उनसे, झगड़ती थी मैं उनसे। बरगद से लता की तरह, लिपटती थी मैं उनसे।। घुटनों के बल चलकर, गोद में मैं चढ़ जाती थी। फलों की आढ़त वाला दूल्हा लाना, कहकर मैं इतराती थी।। मेरे पीछे-पीछे दौड़कर मुझे साइकिल चलाना सिखाया। अपने हर फर्ज को उन्होंने बखूबी निभाया।। मेरे गिरने से पहले ही उन्होंने मुझे संभाला। मेरी हर ख्वाहिश को अपने सपनों सा पाला।। जो कुछ भी मैंने पाया, उनसे ही है पाया। सिर पर पापा का हाथ जैसे तरुवर की है छाया।। दूर रहकर भी मुझसे, दिल से हैं वो मेरे पास। पापा की प्यारी बेटी होने सा नहीं है कोई एहसास।।

एसिड अटैक फाइटर

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एक छोटी लड़की यही कोई 15-16 साल की मस्ती में झूमती, कुछ गाती, गुनगुनाती चली जा रही थी अपनी ही धुन में  उसकी छोटी-छोटी आंखों में  बड़े-बड़े कुछ सपने थे चाहत थी जिंदगी में कुछ करने की खुद को अलहदा साबित करने की कि अचानक सामने से आते एक लड़के ने फेंक दिया उसके ऊपर तेजाब.... जिस से जल गया उसका शरीर और उससे भी कहीं ज्यादा शायद झुलस गया था उसका मन वो जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी और उसके अपराधी खुलेआम सड़कों पर घूम रहे थे लेकिन लड़की ने हिम्मत नहीं हारी खुद को संभाला उसने और एक बार फिर उठ खड़ी हुई अपनी लड़ाई आप लड़ने के लिए कुछ ही समय में उसने दिला दी अपने अपराधियों को सजा और दिखा दिया दुनिया को कि वो  वाकई में है सबसे अलहदा आज फिर उसकी आंखों में  पहले जैसी चमक थी और चेहरे पर रंगत क्योंकि बन गई थी वह  हर लड़की के लिए प्रेरणा स्रोत अब वह एसिड अटैक विक्टिम नहीं एसिड अटैक फाइटर थी। 

हुनर को परवाज देती ब्लॉगिंग

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रचानात्कता एक ऐसी चीज है जो इस दुनिया की बाकी किसी भी चीज से ज्यादा सुकून देती है। या यूं कहा जाए कि आप अपने मन की भावनाओं को अपनी रचनाशीलता से ही कई बार बाहर निकाल पाते हैं। कुछ लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए पेंटिंग बनाते हैं, तो कुछ कविताएं लिखते हैं, कुछ लोग जज्बातों को शेरो-शायरी में पिरो देते हैं और कुछ मुक्तक और छन्द बनाते हैं। दरअसल अपनी भावनाओं को मूर्त रूप देने से ज्यादा सुखद अनुभूति तब होती है जब आपकी रचनाओं को सराहने वाले कोई मिल जाता है। और ऐसा मौका आपको ब्लॉग के जरिए मिलता है। शायद यही वजह है आजकल ब्लॉगिंग युवाओं को बहुत भा रही है। 24 साल की श्रुति को कविताएं लिखना बहुत पसंद है, लेकिन वह अपनी कविताओं को अपनी जान-पहचान के लोगों को पढ़ाने में हिचकिचाती है। उसे लगता है कि अगर उसकी कविता अच्छी नहीं हुई  तो लोग उसका मजाक बनाएंगे। लेकिन वह उसे लोगों के सामने भी लाना चाहती है, ऐसे में उसे खयाल आया कि क्यों न अपना एक ब्लॉग बनाऊं और अपनी सारी कविताओं को उसमें ही डालूं। इस बहाने लोग मेरी कविताओं को पढ़ भी लेंगे। अगर उन्हें मेरी कविता पसंद आई तो मुझे तारीफ मिल जा...

पागल बुढ़िया

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एक बूढ़ी औरत फटे पुराने कपड़े पहने बैठी थी मोहल्ले के एक चबूतरे पर उसके सफेद पके बाल बिखरे हुए थे चेहरे पर अनगिनत झुर्रियां थीं वह बड़-बड़ा रही थी कुछ गली के कुछ बच्चों ने उसे देखा और मारने लगे पत्थर ये कहकर देखो पागल बुढ़िया, देखो पागल बुढ़िया बुढ़िया भागने लगी इधर-उधर बच्चों से बचकर छुप गई एक घर के कोने में लेकिन घर में रहने वाले लोगों ने भी उसे  डंडा दिखाकर भगा दिया वो जमीन पर बैठकर पास पड़े कूड़े में कुछ ढूंढने लगी शायद भूख लग रही थी उसे बहुत तेज तभी मिल गए उसे तरबूज के कुछ छिलके जिसे खोद-खोदकर खाने लगी वो मोहल्ले के कुछ लोग असंवेदनशीलता की हदें पार कर उसे यूं कूड़ा खाता देख हंस रहे थे उस पर  न किसी की आंखों में दया थी और न ही मन में करुणा चेहरे पर थे तो सिर्फ उपेक्षा और उपहास के भाव शायद यही हमारे अत्याधुनिक और  तेजी से विकसित होते समाज की पहली निशानी थी।

भीख मांगता बच्चा

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चौराहे पर खड़ा एक छोटा बच्चा हाथ फैलाकर मांग रहा था किसी से एक किसी से दो  तो किसी से दस रुपये आते-जाते कुछ लोग डाल देते थे उसके कटोरे में कुछ भीख कुछ लोग दे देते थे उसे खाने के लिए  कोई बिस्किट तो कोई नमकीन लेकिन नहीं दे रहा था उसे कोई सीख कि बेटा नहीं तुम्हारी उम्र मांगने की भीख  अभी तो पूरा जीवन है तुम्हारे सामने चाहो तो संवार सकते हो तुम अपनी जिंदगी अपने इन्हीं हाथों से जिनमें तुमने पकड़ा है कटोरा लेकिन इसके लिए तुम्हें बस करनी होगी मेहनत लड़ना होगा अपने हालातों से  समझना होगा कि भीख मांगना ही नहीं है तुम्हारी किस्मत कि तुम ही हो इस देश का भविष्य और नहीं मांगने दोगे तुम भविष्य में इस देश को भीख

भारत और पाकिस्तान

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बहुत से लोग चाहते हैं कि  दो पड़ोसी मुल्क एक-दूसरे से सारे रिश्ते-नाते तोड़ दें तोड़ दें आत्मीयता की सारी जंजीरें वे हमारे दुख में खुश हों और हम उनके दुख में ठहाके लगाएं आखिर हमारी दुश्मनी भी तो कई साल पुरानी है उसे निभाना और आगे बढ़ाना  हमारा ही तो फर्ज है बंद कर दें हम उनके बारे में बात करना यहां रहने वाली बहन का  वहां रहने वाले भाई से मिलना पाबंदी लगा दें सारे रिश्ते और नातों पर आयात और निर्यात पर सिखों के अपने तीर्थ ननकाना साहिब जाने पर ये सब कर लेंगे हम  तोड़ देंगे सारे संबंधों को और बन जाएंगे महान अपनी ही नजरों में लेकिन क्या हम दो देशों में बहने वाले एक ही दरिया के पानी को आपस में मिलने से रोक लेंगे क्या रोक लेंगे हम उस पार की चिड़िया को जो अक्सर सरहद पार कर दाना लेने इधर आ जाती है क्या यहां रहने वाले नाती का वहां रहने वाली  नानी से रिश्ता तोड़ पाएंगे हम क्या लगा पाएंगे हम पाबंदी उन लोगों की यादों पर जिन्होंने वर्षों पहले अपने मुल्क को छोड़ा था शायद नहीं कर पाएंगे ये सब  इस...