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Showing posts from 2015

आओगे तुम एक दिन

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तुम्हारी नारज़गियों को भी दिल से अपनाया हमने और तुम हमारी मोहब्बत को ठुकरा कर चल दिए सोचा था जिएंगे-मरेंगे साथ हम घड़ी दो घड़ी तुम बिताकर चल दिए किस्मत से अपनी हर पल हमने माँगा तुम्हें बदकिस्मती का दामन तुम थमा कर चल दिए पलकों में अपनी तुम्हें छुपाया था हमने और नज़रें तुम हमसे चुरा कर चल दिए चाहत पे अपनी था बहुत नाज़ हमें बेवफा तुम हमको बताकर चल दिए यकीं है मुझे वापस आओगे तुम एक दिन भले ही मोहब्बत के वादों को भुलाकर चल दिए 

इंतज़ार

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जानती थी कि हमारे रिश्ते को भी मिलेगी एक मंजिल और उसके आखिरी मोड़ तक चलूंगी तुम्हारे साथ हां, मंजिल तो मिली पर हाथ छुड़ा लिया तुमने ऐसा तो नहीं सोचा था मैंने मैंने तो तुम्हें पूरी शिद्दत से चाहा था हां थोड़ी नादान हूं मैं और कुछ बत्तमीज भी लेकिन इतनी बुरी हूं क्या कि मेरे साथ रहना मुश्किल हो गया तुम्हारे लिए क्या मेरी आंखों में तुम्हें कभी नहीं दिखी अपनी सूरत क्या मेरी दुआओं में तुमने अपनी सलामती की दुआ नहीं सुनी क्या मेरे आंसुओं में सिर्फ बनावट नजर आई तुम्हें या मेरी मोहब्बत में बस मिलावट मिली तुम्हें रिश्ते में झगड़े भी होते हैं और नाराजगी भी लेकिन क्या सिर्फ इन वजहों से खत्म हो जाती है उनकी पाकीजगी क्या वाकई इतनी नाजुक होती है इन चाहत के रिश्तों की डोर जो एक झटके में टूट जाते हैं यकीं के सारे धागे फिर लग जाती है उनमें हमेशा के लिए एक गांठ और गांठ भी ऐसी कि उसकी चुभन का अहसास हर पल होता रहे चलो छोड़ो न अब... मान भी जाओ न करो इतना गुस्सा... तुम्हारी ही तो हूं मैं डांट लो तुम मुझे जी भरकर और कर लो अपना मन हल्का फिर से एक बार लगा लो मुझे गले से कि तुमसे दूर रहकर नहीं जी...

ज़िन्दगी का सफर

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तेरी हर मुश्किल को अपना बनाकर  तुझे जानेजां अपने दिल में बसाकर  मंज़िलों को पाने की उम्मीदें जगाकर  चलते गिरते सम्भलते कटेगी डगर  तेरी एक मुस्कुराहट पे जां को लुटाकर तेरे ग़मों को दामन में अपने समाकर  कर दूँ क़ुर्बां मैं दिल को तेरे क़दमों में लाकर मेरा साया बनेगा धूप में एक सजर  तेरी ख्वाशिओं में अपने सपने संजोकर  करुँगी उनको पूरा तमन्नाओं में पिरोकर  तेरा हाथ थाम मैं चलूंगी हर राह पर  तुझे पाकर होगा पूरा ज़िन्दगी का सफर 

तुम्हारी यादें

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क्या करूं मैं तुम्हारी इन यादों का तुमसे मिलकर जो आई मैं बैग में चली आई हैं मेरे साथ हर वक्त पास रहने की जिद करती हैं कहीं भी जाऊं चल देती हैं उंगली पकड़कर कभी डांट देती हूं मैं उन्हें सताने पर तो शरारत भरी नजरों से मुस्कुरा देती हैं तुम्हें सोचकर जो रोती हूं मैं कभी तो गले लगाकर चुप कराती हैं तुम्हारी खुशबू को मेरी सांसों में महकाती हैं कभी अपने नटखटपन पर इतराती हैं कभी दर्द होने पर मेरा सिर भी सहलाती हैं कभी कभी छुप जाती हैं तकिए के नीचे मुझे चिढ़ाने के लिए तो सिरहाने बैठकर रातभर बतियाती हैं कभी अच्छा ही है जो चली आईं हैं ये मेरे साथ तुमसे दूर रहकर भी नजदीकियों का अहसास दिलाती हैं सभी

तुम्हारा अहसास

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तुम्हारे साथ गुजारा हर लम्हा जैसे कैद हो जाता है मेरे जेहन में जब भी झुकाती हूं मैं पलकें मुस्कुराते हुए तुम उतर आते हो मेरी अधखुली आंखों में मेरे हाथों को हर पल होता रहता है तुम्हारी छुअन का अहसास सिहरन सी होती रहती है दिल में तुम्हारी नजरों की शरारत को याद कर अलसाई सी सुबह दिलकश हो जाती है ख्वाबों में जब कभी आ जाते हो तुम ठंडी शाम सुरमई सी नजर आती है तुम्हारे आगोश में सिर छुपाए हुए मेरी गोद में सिर रखकर जब  लेट जाते हो तुम बेपरवाह से तो लगता है कि वो पल थम जाए वहीं और उस रात की फिर कभी सहर न हो

एक रिश्ता जो मेरा हो और तुम्हारा भी

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एक रिश्ता जोड़ना चाहती हूं मैं तुमसे जो जुदा हो दुनिया के हर रिश्ते से लेकिन फिर भी उन सब से जुड़ा हो जो मेरा हो, तुम्हारा भी और हो हमारा भी तुम्हारी दोस्त बनकर जानना चाहती हूं तुम्हारे हर राज को और बताना चाहती हूं अपने दिल की हर बात तुम्हें हर लम्हे को खुलकर जीना चाहती हूं तुम्हारे साथ तुम्हारा प्यार बनकर कुछ नखरे उठवाना चाहती हूं अपने अपना दीवाना बनाना चाहती हूं तुम्हें कुछ शरारतें करना चाहती हूं तुम्हारे साथ तुम्हारी पत्नी बनकर तुम्हारी हर परेशानी को अपनाना चाहती हूं हर परिस्थिति में तुम्हारी ताकत बनकर हर मुश्किल में तुम्हारी ढाल बनकर जिंदगी की लड़ाई को जीतना चाहती हूं तुम्हारे साथ तुम्हारी मां बनकर ख्याल रखना चाहती हूं तुम्हारी हर बात का अपने हाथों से रोज तुम्हें खाना खिलाना चाहती हूं थपकी देकर गोद में सुलाना चाहती हूं अपने बच्चे की तरह खेलना चाहती हूं तुम्हारे साथ तुम्हारी बेटी बनकर अपनी जिम्मेदारी सौंपना चाहती हूं तुम्हें चाहती हूं कि जब भी मैं गिरूं तुम संभाल लो मुझे मेरी गलती होने पर मुझे डांटो समझाओ लेकिन फिर गले से लगा लो मुझे माफी देकर जैसे त...

कुछ कभी न पूरे होने वाले ख्वाब

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हर बार टूटते हैं ख्वाब और ख्वाबों के टूटने के साथ टूट जाती हूं मैं भी लेकिन फिर मन सजा लेता है कुछ कभी न पूरे होने वाले ख्वाब चाहे लाख कोशिश कर लूं कि न देखूं कोई ख्वाब फिर भी कभी आँखें तो कभी दिल और कभी ख्वाहिशें धोखा दे जाती हैं और पलकों में नए उजालों के साथ पलने लगते हैं नए ख्वाब कभी देखती हूं मैं सुनहरी सी सुबह में उनकी आंखों की चमक देखने का ख्वाब कभी गुनगुनी धूप में उनकी छांव बनने का ख्वाब कभी ढलती शाम में उनकी बाहों में ढलने का ख्वाब कभी चांदनी रात में उनकी धड़कनों में खोने का ख्वाब और इन सभी ख्वाबों को जीना चाहती हूं मैं एक दिन नहीं बल्कि जिंदगी भर जानती हूं शायद कभी नहीं पूरे होंगे मेरे ये छोटे-छोटे लेकिन बहुत बड़े ख्वाब फिर भी नई आशा और नई उम्मीद के साथ हर रात ख्वाबों में सजते हैं कुछ नए ख्वाब