तेरी हर मुश्किल को अपना बनाकर
तुझे जानेजां अपने दिल में बसाकर
मंज़िलों को पाने की उम्मीदें जगाकर
चलते गिरते सम्भलते कटेगी डगर
तेरी एक मुस्कुराहट पे जां को लुटाकर
तेरे ग़मों को दामन में अपने समाकर
कर दूँ क़ुर्बां मैं दिल को तेरे क़दमों में लाकर
मेरा साया बनेगा धूप में एक सजर
तेरी ख्वाशिओं में अपने सपने संजोकर
करुँगी उनको पूरा तमन्नाओं में पिरोकर
तेरा हाथ थाम मैं चलूंगी हर राह पर
तुझे पाकर होगा पूरा ज़िन्दगी का सफर
वाह!! क्या बात है
ReplyDeleteउनका साथ हो तो पूरा सफ़र जिंदगी ही तो है ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ....
मंज़िलों को पाने की उम्मीदें जगाकर
ReplyDeleteचलते गिरते सम्भलते कटेगी डगर
मेरा साया बनेगा धूप में एक सजर
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..
Lovely poem :)
ReplyDeleteअनुषा जी! ख़्याल बहुत प्यारा है। बस भाषा का कच्चापन खलता है। सजर की जगह शायद शजर होना चाहिए। रचना प्यारी है
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