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Monday, July 6, 2015

ज़िन्दगी का सफर


तेरी हर मुश्किल को अपना बनाकर 
तुझे जानेजां अपने दिल में बसाकर 
मंज़िलों को पाने की उम्मीदें जगाकर 
चलते गिरते सम्भलते कटेगी डगर 

तेरी एक मुस्कुराहट पे जां को लुटाकर
तेरे ग़मों को दामन में अपने समाकर 
कर दूँ क़ुर्बां मैं दिल को तेरे क़दमों में लाकर
मेरा साया बनेगा धूप में एक सजर 

तेरी ख्वाशिओं में अपने सपने संजोकर 
करुँगी उनको पूरा तमन्नाओं में पिरोकर 
तेरा हाथ थाम मैं चलूंगी हर राह पर 
तुझे पाकर होगा पूरा ज़िन्दगी का सफर 

6 comments:

  1. वाह!! क्या बात है

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  2. उनका साथ हो तो पूरा सफ़र जिंदगी ही तो है ...
    भावपूर्ण रचना ....

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  3. मंज़िलों को पाने की उम्मीदें जगाकर
    चलते गिरते सम्भलते कटेगी डगर

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  4. मेरा साया बनेगा धूप में एक सजर

    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..

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  5. अनुषा जी! ख़्याल बहुत प्यारा है। बस भाषा का कच्चापन खलता है। सजर की जगह शायद शजर होना चाहिए। रचना प्यारी है

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