तुम्हारे साथ गुजारा हर लम्हा
जैसे कैद हो जाता है मेरे जेहन में
जब भी झुकाती हूं मैं पलकें
मुस्कुराते हुए तुम उतर आते
हो मेरी अधखुली आंखों में
मेरे हाथों को हर पल होता रहता है
तुम्हारी छुअन का अहसास
सिहरन सी होती रहती है दिल में
तुम्हारी नजरों की शरारत को याद कर
अलसाई सी सुबह दिलकश हो जाती है
ख्वाबों में जब कभी आ जाते हो तुम
ठंडी शाम सुरमई सी नजर आती है
तुम्हारे आगोश में सिर छुपाए हुए
मेरी गोद में सिर रखकर जब
लेट जाते हो तुम बेपरवाह से
तो लगता है कि वो पल थम जाए वहीं
और उस रात की फिर कभी सहर न हो
khoobsurat...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-02-2015) को "अधर में अटका " (चर्चा अंक-1897) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह...लाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteऔर@जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
प्रेम हो बस प्रेम हो और वो रात कभी ख़त्म न हो ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...
बहुत बढिया!!
ReplyDeleteआज 26/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
Anusha जी बहुत भावपूर्ण रचना ...बधाई
ReplyDeletebahut bahut sundar...pyar say bhari rachna
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत :)
ReplyDeleteअहसास उतर गए है रूह तक!!लाजवाब!!सुन्दर रचना पर आपको बधाई!
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