
और उसके आखिरी मोड़ तक चलूंगी तुम्हारे साथ
हां, मंजिल तो मिली पर हाथ छुड़ा लिया तुमने
ऐसा तो नहीं सोचा था मैंने
मैंने तो तुम्हें पूरी शिद्दत से चाहा था
हां थोड़ी नादान हूं मैं और कुछ बत्तमीज भी
लेकिन इतनी बुरी हूं क्या कि मेरे साथ रहना मुश्किल हो गया तुम्हारे लिए
क्या मेरी आंखों में तुम्हें कभी नहीं दिखी अपनी सूरत
क्या मेरी दुआओं में तुमने अपनी सलामती की दुआ नहीं सुनी
क्या मेरे आंसुओं में सिर्फ बनावट नजर आई तुम्हें
या मेरी मोहब्बत में बस मिलावट मिली तुम्हें
रिश्ते में झगड़े भी होते हैं और नाराजगी भी
लेकिन क्या सिर्फ इन वजहों से खत्म हो जाती है उनकी पाकीजगी
क्या वाकई इतनी नाजुक होती है इन चाहत के रिश्तों की डोर
जो एक झटके में टूट जाते हैं यकीं के सारे धागे
फिर लग जाती है उनमें हमेशा के लिए एक गांठ
और गांठ भी ऐसी कि उसकी चुभन का अहसास हर पल होता रहे
चलो छोड़ो न अब... मान भी जाओ
न करो इतना गुस्सा... तुम्हारी ही तो हूं मैं
डांट लो तुम मुझे जी भरकर और कर लो अपना मन हल्का
फिर से एक बार लगा लो मुझे गले से
कि तुमसे दूर रहकर नहीं जी पाऊंगी मैं
क्या कुछ गलतियों की सच में कोई माफी नहीं होती
मैं बुरी हूं पर तुम तो अच्छे हो न
एक बार और दे दो अपनी अच्छाई का सबूत
और छुपा लो मुझे अपने सीने में
कि बस यही एक जगह है जहां मेरे दिल को सच्चा सुकून मिलता है
सिर झुकाकर खड़ी हूं तुम्हारे सामने
इस इंतजार में कि तुम आओ और मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों
में भरकर
चूम लो मेरी आंखों से गिरते आंसुओं को
Bahut sundar , behtreen rachna
ReplyDeleteतुम्हारी ही तो हूं मैं
ReplyDeleteबात तो मार्मिक है िंतु एक नारी द्वारा इस युग में नारी के समर्पण का ऐसा भाव.. सोचने को मजबूर करता है कि अब तक समाज में नारी ने भी अपने आपको नर के बराबर रखने में हिचकिचाती है. आखिर क्यो?
ReplyDeleteप्रीत की फुहार छटक रही है शब्दों से ...
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