एक रिश्ता जोड़ना चाहती हूं मैं तुमसे
जो जुदा हो दुनिया के हर रिश्ते से
लेकिन फिर भी उन सब से जुड़ा हो
जो मेरा हो, तुम्हारा भी और हो हमारा भी
तुम्हारी दोस्त बनकर
जानना चाहती हूं तुम्हारे हर राज को और
बताना चाहती हूं अपने दिल की हर बात तुम्हें
हर लम्हे को खुलकर जीना चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारा प्यार बनकर
कुछ नखरे उठवाना चाहती हूं अपने
अपना दीवाना बनाना चाहती हूं तुम्हें
कुछ शरारतें करना चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारी पत्नी बनकर
तुम्हारी हर परेशानी को अपनाना चाहती हूं
हर परिस्थिति में तुम्हारी ताकत बनकर
हर मुश्किल में तुम्हारी ढाल बनकर
जिंदगी की लड़ाई को जीतना चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारी मां बनकर
ख्याल रखना चाहती हूं तुम्हारी हर बात का
अपने हाथों से रोज तुम्हें खाना खिलाना चाहती हूं
थपकी देकर गोद में सुलाना चाहती हूं
अपने बच्चे की तरह खेलना
चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारी बेटी बनकर
अपनी जिम्मेदारी सौंपना चाहती हूं तुम्हें
चाहती हूं कि जब भी मैं गिरूं तुम संभाल लो मुझे
मेरी गलती होने पर मुझे डांटो समझाओ लेकिन
फिर गले से लगा लो मुझे माफी देकर
जैसे तुम अपनी बहन को रक्षाबंधन पर देते हो वचन
कि जीवनभर करोगे तुम उसकी रक्षा
वैसे ही अपनी रक्षा और सुरक्षा की
जिम्मेदारी देना चाहती हूं मैं तुम्हें
एहसास दिलाना चाहती हूं तुम्हें
तुमसे ही मेरा हर रिश्ता है, तुममें ही मेरी दुनिया है
तुमसे ही मेरी जिंदगी है, तुममें ही सब खुशिया हैं
जो जुदा हो दुनिया के हर रिश्ते से
लेकिन फिर भी उन सब से जुड़ा हो
जो मेरा हो, तुम्हारा भी और हो हमारा भी
तुम्हारी दोस्त बनकर
जानना चाहती हूं तुम्हारे हर राज को और
बताना चाहती हूं अपने दिल की हर बात तुम्हें
हर लम्हे को खुलकर जीना चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारा प्यार बनकर
कुछ नखरे उठवाना चाहती हूं अपने
अपना दीवाना बनाना चाहती हूं तुम्हें
कुछ शरारतें करना चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारी पत्नी बनकर
तुम्हारी हर परेशानी को अपनाना चाहती हूं
हर परिस्थिति में तुम्हारी ताकत बनकर
हर मुश्किल में तुम्हारी ढाल बनकर
जिंदगी की लड़ाई को जीतना चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारी मां बनकर
ख्याल रखना चाहती हूं तुम्हारी हर बात का
अपने हाथों से रोज तुम्हें खाना खिलाना चाहती हूं
थपकी देकर गोद में सुलाना चाहती हूं
अपने बच्चे की तरह खेलना
चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारी बेटी बनकर
अपनी जिम्मेदारी सौंपना चाहती हूं तुम्हें
चाहती हूं कि जब भी मैं गिरूं तुम संभाल लो मुझे
मेरी गलती होने पर मुझे डांटो समझाओ लेकिन
फिर गले से लगा लो मुझे माफी देकर
जैसे तुम अपनी बहन को रक्षाबंधन पर देते हो वचन
कि जीवनभर करोगे तुम उसकी रक्षा
वैसे ही अपनी रक्षा और सुरक्षा की
जिम्मेदारी देना चाहती हूं मैं तुम्हें
एहसास दिलाना चाहती हूं तुम्हें
तुमसे ही मेरा हर रिश्ता है, तुममें ही मेरी दुनिया है
तुमसे ही मेरी जिंदगी है, तुममें ही सब खुशिया हैं
Very nice poem
ReplyDeleteएक प्रेम रूप अनेक.. प्रेम की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमैं सोचता था कि मैं अपने इस तरह के खूबसूरत विचारों को कभी कविता की लाईनों में गूथूंगा..पर आज तक मैं इतना सुन्दर वर्णन नहीं कर पाया ........अच्छा लगा काफी कुछ आपने यहाँ प्रेम के मिश्रित स्वरुप की तरह कैद कर रखा है .....आभार!!
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ....सुंदर
ReplyDeleteनारी तो वैसे भी दोस्त, पत्नी, बहन और माँ है और बाखूबी सभी रूप एक में ही निभा सकने की क्षमता है उसमें ... प्रेम की पराकाष्ठा है नारी ... सुन्दर भावमय रचना ...
ReplyDeleteभावों की सरिता में देखो प्रेम भर दिया सागर का
ReplyDeleteप्रेम का रस भर गागर में मान रख दिया गागर का
बहुत सुन्दर रचना
waah
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteदिल को छू गयी आपकी रचना
keep writting..
'प्रसाद' ने ऐसे ही नारी को श्रद्धा नहीं कह दिया है.. :)
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteलिखते रहिये..
आभार
प्रेम भरी लाजवाब रचना ...
ReplyDeletewow nic
ReplyDelete