www.hamarivani.com

Monday, March 2, 2015

तुम्हारी यादें

क्या करूं मैं तुम्हारी इन यादों का
तुमसे मिलकर जो आई मैं
बैग में चली आई हैं मेरे साथ
हर वक्त पास रहने की जिद करती हैं
कहीं भी जाऊं चल देती हैं उंगली पकड़कर
कभी डांट देती हूं मैं उन्हें सताने पर
तो शरारत भरी नजरों से मुस्कुरा देती हैं
तुम्हें सोचकर जो रोती हूं मैं कभी
तो गले लगाकर चुप कराती हैं
तुम्हारी खुशबू को
मेरी सांसों में महकाती हैं कभी
अपने नटखटपन पर इतराती हैं कभी
दर्द होने पर मेरा सिर भी
सहलाती हैं कभी
कभी छुप जाती हैं तकिए
के नीचे मुझे चिढ़ाने के लिए
तो सिरहाने बैठकर
रातभर बतियाती हैं कभी
अच्छा ही है जो चली आईं
हैं ये मेरे साथ
तुमसे दूर रहकर भी
नजदीकियों का अहसास
दिलाती हैं सभी

8 comments:

  1. bahut shandar...कभी डांट देती हूं मैं उन्हें सताने पर
    तो शरारत भरी नजरों से मुस्कुरा देती हैं
    तुम्हें सोचकर जो रोती हूं मैं कभी
    तो गले लगाकर चुप कराती हैं

    ReplyDelete
  2. please visit on my blog and give your valuable comments on my blog posts. you can read our posts and leave your thoughts, which will inspire me to write more and more.

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/?m=1

    ReplyDelete
  3. वाह बेहतरीन भावपूर्ण रचना ....बधाई स्वीकार करें ...सादर

    ReplyDelete
  4. भावपूर्ण कविता।

    ReplyDelete
  5. अनूषा जी,

    कविता की कल्पना व उन भावों की प्रस्तुति बहुत ही सराहनीय है.

    बधाईय़ाँ...

    अयंगर.

    ReplyDelete
  6. यादें न समय देखती हैं न मौका ... चली आती हैं यूँ ही ...
    भावपूर्ण रचना ... होली की बधाई और शुभकामनायें ...

    ReplyDelete
  7. बहुत ही शानदार रचना की प्रस्‍‍तुति।

    ReplyDelete