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Saturday, May 31, 2014

धान रोपती औरत

कभी देखी है तुमने धान रोपती हुई औरत
अपने बालों को कपड़े में लपेटकर
साड़ी को घुटनों तक चढ़ाकर
वो घुस जाती है पानी में और
घंटों यूं ही उस पानी में खड़े रहकर
रोपती रहती है धान
खेत में भरे गंदे पानी से सड़ जाते हैं
उसके हाथ और पैर
कुछ जोंक भी चिपक जाती हैं उसके पैरों में
और भी कई पानी के कीड़े जो
चूसते रहते हैं उसका खून
फिर भी धान रोपती औरतें
अपने लक्ष्य से नहीं भटकतीं
और चेहरे पर मुस्कान लिए
गाती रहती हैं कजरी
इतना दर्द सहने के बाद भी
उनके चेहरे पर होती है एक खुशी
खुशी इस बात की कि उनकी रोपी हुई फसल
बड़ी होकर जब कटेगी तो इसी से
उनका  घर चलेगा और
खुशी इस बात की उनके धानों से
मिलने वाले चावल से
न जाने कितनों का पेट भरेगा।।

9 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया
      सादर।।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-06-2014) को ""स्नेह के ये सारे शब्द" (चर्चा मंच 1631) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए शुक्रिया
    सादर।।

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  4. बहुत बढ़िया।

    सादर

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  5. गांव की याद ताज़ी हो गयी .. सटीक बातें कही आपने बहुत बढ़िया लगा

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  6. संवेदनशील रचना

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  7. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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