धान रोपती औरत

कभी देखी है तुमने धान रोपती हुई औरत
अपने बालों को कपड़े में लपेटकर
साड़ी को घुटनों तक चढ़ाकर
वो घुस जाती है पानी में और
घंटों यूं ही उस पानी में खड़े रहकर
रोपती रहती है धान
खेत में भरे गंदे पानी से सड़ जाते हैं
उसके हाथ और पैर
कुछ जोंक भी चिपक जाती हैं उसके पैरों में
और भी कई पानी के कीड़े जो
चूसते रहते हैं उसका खून
फिर भी धान रोपती औरतें
अपने लक्ष्य से नहीं भटकतीं
और चेहरे पर मुस्कान लिए
गाती रहती हैं कजरी
इतना दर्द सहने के बाद भी
उनके चेहरे पर होती है एक खुशी
खुशी इस बात की कि उनकी रोपी हुई फसल
बड़ी होकर जब कटेगी तो इसी से
उनका  घर चलेगा और
खुशी इस बात की उनके धानों से
मिलने वाले चावल से
न जाने कितनों का पेट भरेगा।।

Comments

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-06-2014) को ""स्नेह के ये सारे शब्द" (चर्चा मंच 1631) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

    ReplyDelete
  2. मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए शुक्रिया
    सादर।।

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया।

    सादर

    ReplyDelete
  4. गांव की याद ताज़ी हो गयी .. सटीक बातें कही आपने बहुत बढ़िया लगा

    ReplyDelete
  5. संवेदनशील रचना

    ReplyDelete
  6. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

लड़कियों की जिंदगी

क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

खतरनाक होता है प्यार