प्रेम प्रणय की इस बेला को
जी भर कर जीना है अब
तुझसे मिलन की उत्कंठा को
अविरल जल सा बहना है अब
गीत भी होगा रीत भी होगी
मीत भी होगा प्रीत भी होगी
हृदय में दबी अभिलाषाओं को
इक चिड़िया सा उड़ना है अब
मां-पापा के दिवा स्वप्न को
पुल्कित होते सबके मन को
स्वस्रेह से सींचना है अब
तुझसे मुझको मुझसे तुझको
पवित्र बंधन में बंधना है अब
प्रेम प्रणय की इस बेला को
जी भर का जीना है अब।।।
हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
सादर
आपका शुक्रिया यशवंत जी
Deleteचर्चा मंच पर मेरी कृति को स्थान देने के लिए आपका धन्यवाद...
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर !
ReplyDeletenew post ग्रीष्म ऋतू !
thank you so much
Deleteखूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteshukriya...
Deleteसुंदर संकल्प।
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ….दिन में फैली ख़ामोशी