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Monday, April 11, 2016

ऐतबार

तुम भले ही न करो अपने प्यार का इकरार
पर मुझको है तुम पर पूरा ऐतबार

तुम्हारी हूं मैं और रहूंगी भी तुम्हारी
करूंगी सात जन्मों तक मैं तुम्हारा इंतजार

कभी तो बयां करोगे तुम अपने जज्बात
कि तुम्हारे सीने में दबा है बस मेरा प्यार

कोशिश कर लो रोकने की खुद को चाहे जितनी
तुम्हें आना ही होगा मेरे पास बार-बार

पलकों में मेरी सूरत को छुपा पाओगे कैसे
आंखों की जुबां के भी तो लफ्ज होते हैं हजार

तुम्हें पाना है मेरी जिंदगी की ख्वाहिश
मिलो तुम मुझे जहां के इस पार या उस पार

तुम भले ही न करो अपने प्यार का इकरार
पर मुझको है तुम पर पूरा ऐतबार

5 comments:

  1. सुन्दर रचना !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-04-2016) को "ज़िंदगी की किताब" (चर्चा अंक-2310) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " एक निवेदन - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. अच्छी रचना , शब्दों का चयन अच्छा

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  5. बहुत खूब ... प्रेम में गहराई हो तो किसी के एतबार होने न होने से क्या फर्क पड़ता है ....

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