तुम्हारी नारज़गियों को भी दिल से अपनाया हमने
और तुम हमारी मोहब्बत को ठुकरा कर चल दिए
सोचा था जिएंगे-मरेंगे साथ हम
घड़ी दो घड़ी तुम बिताकर चल दिए
किस्मत से अपनी हर पल हमने माँगा तुम्हें
बदकिस्मती का दामन तुम थमा कर चल दिए
पलकों में अपनी तुम्हें छुपाया था हमने
और नज़रें तुम हमसे चुरा कर चल दिए
चाहत पे अपनी था बहुत नाज़ हमें
बेवफा तुम हमको बताकर चल दिए
और तुम हमारी मोहब्बत को ठुकरा कर चल दिए
सोचा था जिएंगे-मरेंगे साथ हम
घड़ी दो घड़ी तुम बिताकर चल दिए
किस्मत से अपनी हर पल हमने माँगा तुम्हें
बदकिस्मती का दामन तुम थमा कर चल दिए
पलकों में अपनी तुम्हें छुपाया था हमने
और नज़रें तुम हमसे चुरा कर चल दिए
चाहत पे अपनी था बहुत नाज़ हमें
बेवफा तुम हमको बताकर चल दिए
यकीं है मुझे वापस आओगे तुम एक दिन
भले ही मोहब्बत के वादों को भुलाकर चल दिए
बहुत खूब.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-08-2015) को "गुरुओं को कृतज्ञभाव से प्रणाम" {चर्चा अंक-2054} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
गुरू पूर्णिमा तथा मुंशी प्रेमचन्द की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
wah
ReplyDeletekhoobsurat..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पोस्ट। सक्रिय लेखन करती रहें। ब्लाग पर विज्ञापन मिल सकते हैं।
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