कभी तपती धूप में भी जुगनू सा चमकता है वो
कभी चांद की रोशनी में दिए सा जलता है वो
कभी लाल गुलाब पर गिरी शबनमी बूंद की तरह इतराता है वो
कभी मां के गले में पड़ी तस्बीह के दाने जैसा इठलाता है वो
कभी आसमान में बादलों के झुंड सा नजर आता है वो
कभी बारिश की बूंदों सा धरती पर गिर जाता है वो
कभी मुझे ख्वाबों में जगाकर खुद सो जाता है वो
कभी दादी की लोरी की तरह मुझे थपथपाता है वो
कभी जमीन पर उगी घास की तरह पैरों को गुदगुदाता है वो
कभी पेड़ की डाल पर बैठी कोयल की तरह गुनगुनाता है वो
कभी बहती हवा में मोगरे की सुगंध सा बिखर जाता है वो
कौन है वो, कहां है वो
मेरे ही सवालों में मुझे उलझाता है वो,
कहां-कहां मैं ढूंढूं उसे,
हर जगह तो मुझे नजर आता है वो....
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (2-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर
भावनाओं को क्या खूब पिरोया है शब्दों में..निश्चित रूप से एक उत्कृष्ट कृति
ReplyDeleteकल 13/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
कौन है वो, कहां है वो
ReplyDeleteमेरे ही सवालों में मुझे उलझाता है वो,
कहां-कहां मैं ढूंढूं उसे,
हर जगह तो मुझे नजर आता है वो....
बहुत बढ़िया