खुशियों की तलाश में निकले थे हम
लेकिन नसीब में लिखे थे सिर्फ गम
सोचा न था कि वक्त हमें ये दिन दिखाएगा
जिसकी हंसी के लिए मांगते हैं हम दुआएं,वही हमें रुलाएगा
हमने तो खुद से बढ़कर के उसे चाहा हमेशा
नहीं पता था कि वो मेरा साथ यूं निभाएगा
जिस पल में होगी मुझे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत
उस पल वो मुझे छोड़कर चला जाएगा
पर क्या करें हम हैं बहुत मजबूर, लाख रोके इस दिल को
लेकिन फिर भी सिर उनके लिए इबादत करने में झुक जाएगा
लेकिन नसीब में लिखे थे सिर्फ गम
सोचा न था कि वक्त हमें ये दिन दिखाएगा
जिसकी हंसी के लिए मांगते हैं हम दुआएं,वही हमें रुलाएगा
हमने तो खुद से बढ़कर के उसे चाहा हमेशा
नहीं पता था कि वो मेरा साथ यूं निभाएगा
जिस पल में होगी मुझे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत
उस पल वो मुझे छोड़कर चला जाएगा
पर क्या करें हम हैं बहुत मजबूर, लाख रोके इस दिल को
लेकिन फिर भी सिर उनके लिए इबादत करने में झुक जाएगा
वो ग़मों के ज़रिये ही तो ज़िन्दगी की खूबसूरती से रू-ब-रू कराता है। शायद इसीलिए हम इबादत कर्ण नही छोड़ पाते!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-09-2014) को "उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए" (चर्चा मंच 1730) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-09-2014) को "उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए" (चर्चा मंच 1730) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDelete