फिल्मी जगत के सुपर स्टार राजेशखन्ना का बुधवार दोपहर मुंबई स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। 'पुष्पा मुझसे ये आंसू देखे नहीं जाते...आई हेट टियर्स' जैसा यादगार डायलॉग देने वाला ये सुपरस्टार लोगों की आंखों में आंसू देकर इस जहां से चला गया। आज शायद ही किसी को याद हो 1969 का वो दौर जब राजेश खन्ना एक हवा के हल्के झोंके की तरह आकर अपने जादुई मुस्कान से देश की हर युवा लड़की के दिलो-दिमाग पर छा गए। कई बार सुना है कि ये वो दौर था कि लड़कियों में राजेश खन्ना को लेकर ऐसी दीवानगी थी कि हर लड़की के तकिए के नीचे उनकी एक तस्वीर हुआ करती थी। 60-70 के दशक में जब लड़कियां घर के बाहर बिना पापा या भाई के साथ के कदम भी नहीं रखती थीं। तब ना तो हर घर में टीवी हुआ करते थे और ना ही फेसबुक, आरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए फिल्मों और अभिनेताओं का प्रचार-प्रसार, उस दौर में जब सिर्फ अखबार के जरिए लोगों को फिल्मों के बारे में पता चलता था और सिनेमा हॉल में ही फिल्में देखी जाती थीं, लड़कियों का राजेश खन्ना के लिए दीवाना होना उनकी उस शख्सियत को बयां करता है जिसकी बस एक झलक पाने के लिए घंटों तक स्टूडियो के बाहर लड़कियां कतार लगाकर खड़ी रहती थीं।
29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना था। अपने फिल्मी करियर की शुरूआत राजेश खन्ना ने 1966 में आई फिल्म 'आखिरी ख़त' से की थी। उस समय राजेश खन्ना की उम्र 24 बर्ष थी। खत के बाद उन्होंने राज, बहारों के सपने और औरत के रूप जैसी कई फिल्में की लेकिन 1969 में आई फिल्म 'आराधना' ने उन्हें रातों रात एक स्ट्रगलिंग स्टार से सुपर स्टार बना दिया। राजेश खन्ना ने अभिनय को अपना करियर परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ चुना था लेकिन उनकी इस सफलता से उनके परिवार वालों का सिर भी फख्र से ऊंचा हो गया। आराधना में शर्मिला टैगोर के साथ उनकी जोड़ी को बहुत पसंद किया गया और वो सिर्फ लड़कियों ही नहीं बल्कि हर किसी के दिलो-दिमाग पर छा गए। आराधना के सुपरहिट होने के बाद राजेश खन्ना ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक लगातार 15 हिट फिल्में देकर दूसरे अभिनेताओं के लिए एक मिसाल कायम कर दी। इसके बाद मुमताज के साथ भी उन्होंने कई हिट फिल्में दीं और राजेश-मुमताज की जोड़ी के लोग दीवाने हो गए।
अपने रोमांटिक अंदाज, मासूम मुस्कान, स्वाभाविक अभिनय के साथ कई हिट फिल्मों की बदौलत करीब डेढ़ दशक तक उन्होंने सिने प्रेमियों के दिल पर राज किया। उनके रूप में सिनेमा जगत को एक ऐसा सुपरस्टार मिला जिसकी स्टाइल के आज 4 दशक बाद भी लोग दीवाने हैं।
राजेश खन्ना ने अपनी जिंदगी में अपने बेहतरीन अभिनय के लिए कई पुरस्कार जीते। वर्ष 1970 में फिल्म सच्चा-झूठा के लिए पहली बार उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। इसके बाद आने वाला साल यानी कि 1971 उनके करियर का सबसे अच्छा साल माना जाता है। इस साल में उन्होंने आनंद, आन मिलो सजना, कटी पतंग, हाथी मेरे साथी, अंदाज और महबूब की मेहंदी जैसी सुपरहिट फिल्में दी।
दो रास्ते, दुश्मन, बावर्ची, मेरे जीवन साथी, जोरू का गुलाम, अनुराग, दाग, नमक हराम और हमशक्ल के रूप में हिट फिल्मों के जरिए उन्होंने बॉक्स आफिस को कई वर्षों तक गुलजार रखा।
आनंद फिल्म में उनके द्वारा किए गए भावपूर्ण अभिनय को एक उदाहरण के तौर पर लिया जाता है। लोगों के अंदर जिंदगी के सबसे कठिन दौर में भी अपनी मुस्कुराहट को बरकरार रखने का जज्बा इस फिल्म के जरिए राजेश खन्ना ने पैदा किया। इस फिल्म में उनके सशक्त अभिनय के लिए वर्ष 1971 में उन्हें लगातार दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। तीन साल बाद उन्हें आविष्कार फिल्म के लिए भी यह पुरस्कार प्रदान किया गया। साल 2005 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया था।
गायक किशोर कुमार और संगीतकार आरडी बर्मन के साथ राजेश खन्ना की जोड़ी ने कई फिल्मों में यादगार संगीत दिया। फिल्म आराधना के गीत 'रूप तेरा मस्ताना' और 'मेरे सपनों की रानी' में तीनों ने पहली बार एक साथ काम किया और इसके बाद लगभग 30 फिल्मों ने इन्होंने एक साथ काम किया। किशोर कुमार के अनेक गाने राजेश खन्ना पर ही फिल्माए गए और किशोर के स्वर राजेश खन्ना से पहचाने जाने लगे।
1973 में अपने से कई साल छोटी नई अभिनेत्री डिम्पल कपाड़िया से राजेश खन्ना ने शादी की और वे दो बेटियों ट्विंकल और रिंकी के पिता बन गए, लेकिन राजेश खन्ना का वैवाहिक जीवन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका और कुछ समय बाद ही वो अलग गए। इसके बाद राजेश खन्ना फिल्मों में व्यस्त हो गए और डिंपल ने भी अपने करियर पर ध्यान देना जरूरी समझा। राजेश खन्ना ने करीब डेढ़ दशक तक लोगों के दिलों पर राज किया लेकिन 1980 के बाद उनका करियर डगमगाने लगा। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा और 1991 से 1996 तक नई दिल्ली से कांग्रेस के लोकसभा सांसद भी रहे।
इस बीच उन्होंने अभिनय की भी एक नई पारी शुरू की और वर्ष 1994 में फिल्म खुदाई में काम किया। उसके बाद 1999 में आ अब लौट चलें, 2002 में क्या दिल ने कहा, 2006 में जाना और उसके बाद वफा फिल्में कीं लेकिन इस दौर में ना तो राजेश खन्ना के पहले जैसे प्रशंसक रह गए थे, ना ही भीड़ में राजेश-राजेश चीखती हजारों लड़कियों की आवाज और ना ही बस एक बार राजेश खन्ना को छू लेने भर की दीवानगी।
- अनुषा मिश्रा
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