छोटी बेटी

मां, मुझे जन्म दो,
मैं जानती हूं तुम्हारी पलकें गीली हैं गर्भ को पहचान कर
दीदी को गोद में बिठाकर तुम रोज एक सपना देखतीं थीं
रक्षा बंधन के त्यौहार का और दूज के टीके का
जो मेरी पहचान के साथ गया
दादी उदास हैं और पापा कुछ परेशान
एक और बेटी का दहेज अभी से जुटाने की चिंता 
खींच देंगी उनके माथे पर कुछ और लकीरें 
कितना क्रूर होता है छोटी बेटी का नसीब
उसके आने से पहले न जाने कितने उपाय किए जाते हैं
कि वो न आए,
लेकिन फिर भी वो आ ही जाती है
छोटी-छोटी बाहें फैलाए, अपनी नन्ही चमकती आंखों के साथ
वो प्यार भी चाहेगी और दुलार भी
छोटी बेटी है वो इसलिए उसके जन्म पर आंसू मत बहाना

Comments

  1. सार्थक प्रस्तुति ...

    आप भी पधारें
    ये रिश्ते ...

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  2. आप की ये रचना आज यानी 01-03-2013 को http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की गयी है। आप भी इस हलचल में पधारें।

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