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Showing posts from 2012

इबादत

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खुशियों की तलाश में निकले थे हम लेकिन नसीब में लिखे थे सिर्फ  गम सोचा न था कि वक्त हमें ये दिन दिखाएगा जिसकी हंसी के लिए मांगते हैं हम दुआएं,वही हमें रुलाएगा हमने तो खुद से बढ़कर के उसे चाहा हमेशा नहीं पता था कि वो मेरा  साथ यूं निभाएगा जिस पल में होगी मुझे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत उस पल वो मुझे छोड़कर चला जाएगा पर क्या करें हम हैं बहुत मजबूर, लाख रोके इस दिल को लेकिन फिर भी सिर उनके लिए इबादत करने में झुक जाएगा

संस्कारों को पहनावे से न तोलें

खाप पंचायतें तो हमेशा से ही अपने बेबुनियादी फतवों के लिए जानी जाती रही हैं। खाप के सारे सदस्य महिलाओं को एक तुच्छ वस्तु समझते रहे हैं और उन पर हमेशा अपना अधिकार और आदेश थोपने की कोशिश करते रहे हैं। इस सब के बावजूद अगर हरियाणा के जींद जिले के बीबीपुर गांव में खाप में महिलाओं को बराबर का हक और सम्मान दिया जा रहा है तो ये बड़ी बात है और दूसरी ओर मुजफ्फरनगर के मंसूरपुर के गांव दूधाहेड़ी में लड़कियां एक अलग पंचायत बनाकर खाप के फैसलों का समर्थन कर रही हैं और खुद खाप के बताए रास्ते पर चलने के लिए आतुर हो रही हैं। उन्हें खाप का 40 साल से कम उम्र की महिलाओं को घर से बाहर अकेले न निकलने और मोबाइल न रखने का फैसला गलत नहीं सही लग रहा है और वो इसके समर्थन में भी उतर आर्इं। एक ओर तो महिलाएं अपना बर्चस्व बचाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं और दूसरी ओर खाप के ऐसे फैसलों के समर्थन में आगे भी आ रही हैं। वो ये मानने के लिए तैयार हैं कि जींस पहनना, लम्बे नाखून रखना, बाल कटवाना और मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना उनके लिए सही नहीं है। क्या ये सही है? जैसे सूट एक पहनावा है वैसे ही जींस भी एक पहनावा है। सूट से भी पू...

मौत आनी है आएगी एक दिन

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फिल्मी जगत के सुपर स्टार राजेशखन्ना का बुधवार दोपहर मुंबई स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। 'पुष्पा मुझसे ये आंसू देखे नहीं जाते...आई हेट टियर्स' जैसा यादगार डायलॉग देने वाला ये सुपरस्टार लोगों की आंखों में आंसू देकर इस जहां से चला गया। आज शायद ही किसी को याद हो 1969 का वो दौर जब राजेश खन्ना एक हवा के हल्के झोंके की तरह आकर अपने जादुई मुस्कान से देश की हर युवा लड़की के दिलो-दिमाग पर छा गए। कई बार सुना है कि ये वो दौर था कि लड़कियों में राजेश खन्ना को लेकर ऐसी दीवानगी थी कि हर लड़की के तकिए के नीचे उनकी एक तस्वीर हुआ करती थी। 60-70 के दशक में जब लड़कियां घर के बाहर बिना पापा या भाई के साथ के कदम भी नहीं रखती थीं। तब ना तो हर घर में टीवी हुआ करते थे और ना ही फेसबुक, आरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए फिल्मों और अभिनेताओं का प्रचार-प्रसार, उस दौर में जब सिर्फ अखबार के जरिए लोगों को फिल्मों के बारे में पता चलता था और सिनेमा हॉल में ही फिल्में देखी जाती थीं, लड़कियों का राजेश खन्ना के लिए दीवाना होना उनकी उस शख्सियत को बयां करता है जिसकी बस एक झलक पाने के  लिए घंटों तक स्टूडि...

एक हंसी ख्वाब

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कभी खुली तो कभी बंद आंखों से देखा था एक ख्वाब कभी सोते तो कभी जागते हुए देखा था एक ख्वाब एक हंसी हमसफर का हाथ थामे समंदर के किनारे टहलने का ख्वाब उसकी बाहों में बाहें डाले अम्बर की ऊंचाइयां छूने का ख्वाब उसकी एक प्यारी सी मुस्कुराहट के लिए कुछ भी कर गुजरने का ख्वाब उसके चेहरे को देखकर सूरज के उगने और शाम के ढलने का ख्वाब खुद को उसकी पलकों में छुपाकर जिंदगी गुजारने का ख्वाब मुझे है यकीं एक दिन खयालों से निकलकर हकीकत से रूबरू होगा मेरा ख्वाब

क्षण भर को क्यों प्यार किया था ?

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर, पलक संपुटों में मदिरा भर, तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था? क्षण भर को क्यों प्यार किया था? यह अधिकार कहाँ से लाया! और न कुछ मैं कहने पाया - मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था! क्षण भर को क्यों प्यार किया था? वह क्षण अमर हुआ जीवन में, आज राग जो उठता मन में - यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था! क्षण भर को क्यों प्यार किया था? - हरिवंश राय बच्चन

चाँद और कवि

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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ? मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते। आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का आज बनता और कल फिर फूट जाता है किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो? बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है। मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली, देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू? स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी? आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू? मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते, आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ, और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की, इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ। मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी कल्पना की जीभ में भी धार होती है, बाण ही होते विचारों के नहीं केवल, स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है। स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे- रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे, रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को, स्वर्ग की ही ओर बढ़ते ...

छोटी बेटी

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मां, मुझे जन्म दो, मैं जानती हूं तुम्हारी पलकें गीली हैं गर्भ को पहचान कर दीदी को गोद में बिठाकर तुम रोज एक सपना देखतीं थीं रक्षा बंधन के त्यौहार का और दूज के टीके का जो मेरी पहचान के साथ गया दादी उदास हैं और पापा कुछ परेशान एक और बेटी का दहेज अभी से जुटाने की चिंता  खींच देंगी उनके माथे पर कुछ और लकीरें  कितना क्रूर होता है छोटी बेटी का नसीब उसके आने से पहले न जाने कितने उपाय किए जाते हैं कि वो न आए, लेकिन फिर भी वो आ ही जाती है छोटी-छोटी बाहें फैलाए, अपनी नन्ही चमकती आंखों के साथ वो प्यार भी चाहेगी और दुलार भी छोटी बेटी है वो इसलिए उसके जन्म पर आंसू मत बहाना