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एक हंसी ख्वाब

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कभी खुली तो कभी बंद आंखों से देखा था एक ख्वाब कभी सोते तो कभी जागते हुए देखा था एक ख्वाब एक हंसी हमसफर का हाथ थामे समंदर के किनारे टहलने का ख्वाब उसकी बाहों में बाहें डाले अम्बर की ऊंचाइयां छूने का ख्वाब उसकी एक प्यारी सी मुस्कुराहट के लिए कुछ भी कर गुजरने का ख्वाब उसके चेहरे को देखकर सूरज के उगने और शाम के ढलने का ख्वाब खुद को उसकी पलकों में छुपाकर जिंदगी गुजारने का ख्वाब मुझे है यकीं एक दिन खयालों से निकलकर हकीकत से रूबरू होगा मेरा ख्वाब

क्षण भर को क्यों प्यार किया था ?

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर, पलक संपुटों में मदिरा भर, तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था? क्षण भर को क्यों प्यार किया था? यह अधिकार कहाँ से लाया! और न कुछ मैं कहने पाया - मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था! क्षण भर को क्यों प्यार किया था? वह क्षण अमर हुआ जीवन में, आज राग जो उठता मन में - यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था! क्षण भर को क्यों प्यार किया था? - हरिवंश राय बच्चन

चाँद और कवि

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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ? मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते। आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का आज बनता और कल फिर फूट जाता है किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो? बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है। मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली, देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू? स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी? आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू? मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते, आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ, और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की, इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ। मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी कल्पना की जीभ में भी धार होती है, बाण ही होते विचारों के नहीं केवल, स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है। स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे- रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे, रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को, स्वर्ग की ही ओर बढ़ते ...

छोटी बेटी

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मां, मुझे जन्म दो, मैं जानती हूं तुम्हारी पलकें गीली हैं गर्भ को पहचान कर दीदी को गोद में बिठाकर तुम रोज एक सपना देखतीं थीं रक्षा बंधन के त्यौहार का और दूज के टीके का जो मेरी पहचान के साथ गया दादी उदास हैं और पापा कुछ परेशान एक और बेटी का दहेज अभी से जुटाने की चिंता  खींच देंगी उनके माथे पर कुछ और लकीरें  कितना क्रूर होता है छोटी बेटी का नसीब उसके आने से पहले न जाने कितने उपाय किए जाते हैं कि वो न आए, लेकिन फिर भी वो आ ही जाती है छोटी-छोटी बाहें फैलाए, अपनी नन्ही चमकती आंखों के साथ वो प्यार भी चाहेगी और दुलार भी छोटी बेटी है वो इसलिए उसके जन्म पर आंसू मत बहाना