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Showing posts from July, 2015

आओगे तुम एक दिन

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तुम्हारी नारज़गियों को भी दिल से अपनाया हमने और तुम हमारी मोहब्बत को ठुकरा कर चल दिए सोचा था जिएंगे-मरेंगे साथ हम घड़ी दो घड़ी तुम बिताकर चल दिए किस्मत से अपनी हर पल हमने माँगा तुम्हें बदकिस्मती का दामन तुम थमा कर चल दिए पलकों में अपनी तुम्हें छुपाया था हमने और नज़रें तुम हमसे चुरा कर चल दिए चाहत पे अपनी था बहुत नाज़ हमें बेवफा तुम हमको बताकर चल दिए यकीं है मुझे वापस आओगे तुम एक दिन भले ही मोहब्बत के वादों को भुलाकर चल दिए 

इंतज़ार

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जानती थी कि हमारे रिश्ते को भी मिलेगी एक मंजिल और उसके आखिरी मोड़ तक चलूंगी तुम्हारे साथ हां, मंजिल तो मिली पर हाथ छुड़ा लिया तुमने ऐसा तो नहीं सोचा था मैंने मैंने तो तुम्हें पूरी शिद्दत से चाहा था हां थोड़ी नादान हूं मैं और कुछ बत्तमीज भी लेकिन इतनी बुरी हूं क्या कि मेरे साथ रहना मुश्किल हो गया तुम्हारे लिए क्या मेरी आंखों में तुम्हें कभी नहीं दिखी अपनी सूरत क्या मेरी दुआओं में तुमने अपनी सलामती की दुआ नहीं सुनी क्या मेरे आंसुओं में सिर्फ बनावट नजर आई तुम्हें या मेरी मोहब्बत में बस मिलावट मिली तुम्हें रिश्ते में झगड़े भी होते हैं और नाराजगी भी लेकिन क्या सिर्फ इन वजहों से खत्म हो जाती है उनकी पाकीजगी क्या वाकई इतनी नाजुक होती है इन चाहत के रिश्तों की डोर जो एक झटके में टूट जाते हैं यकीं के सारे धागे फिर लग जाती है उनमें हमेशा के लिए एक गांठ और गांठ भी ऐसी कि उसकी चुभन का अहसास हर पल होता रहे चलो छोड़ो न अब... मान भी जाओ न करो इतना गुस्सा... तुम्हारी ही तो हूं मैं डांट लो तुम मुझे जी भरकर और कर लो अपना मन हल्का फिर से एक बार लगा लो मुझे गले से कि तुमसे दूर रहकर नहीं जी...

ज़िन्दगी का सफर

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तेरी हर मुश्किल को अपना बनाकर  तुझे जानेजां अपने दिल में बसाकर  मंज़िलों को पाने की उम्मीदें जगाकर  चलते गिरते सम्भलते कटेगी डगर  तेरी एक मुस्कुराहट पे जां को लुटाकर तेरे ग़मों को दामन में अपने समाकर  कर दूँ क़ुर्बां मैं दिल को तेरे क़दमों में लाकर मेरा साया बनेगा धूप में एक सजर  तेरी ख्वाशिओं में अपने सपने संजोकर  करुँगी उनको पूरा तमन्नाओं में पिरोकर  तेरा हाथ थाम मैं चलूंगी हर राह पर  तुझे पाकर होगा पूरा ज़िन्दगी का सफर