कुछ कभी न पूरे होने वाले ख्वाब

हर बार टूटते हैं ख्वाब और ख्वाबों के टूटने के साथ टूट जाती हूं मैं भी लेकिन फिर मन सजा लेता है कुछ कभी न पूरे होने वाले ख्वाब चाहे लाख कोशिश कर लूं कि न देखूं कोई ख्वाब फिर भी कभी आँखें तो कभी दिल और कभी ख्वाहिशें धोखा दे जाती हैं और पलकों में नए उजालों के साथ पलने लगते हैं नए ख्वाब कभी देखती हूं मैं सुनहरी सी सुबह में उनकी आंखों की चमक देखने का ख्वाब कभी गुनगुनी धूप में उनकी छांव बनने का ख्वाब कभी ढलती शाम में उनकी बाहों में ढलने का ख्वाब कभी चांदनी रात में उनकी धड़कनों में खोने का ख्वाब और इन सभी ख्वाबों को जीना चाहती हूं मैं एक दिन नहीं बल्कि जिंदगी भर जानती हूं शायद कभी नहीं पूरे होंगे मेरे ये छोटे-छोटे लेकिन बहुत बड़े ख्वाब फिर भी नई आशा और नई उम्मीद के साथ हर रात ख्वाबों में सजते हैं कुछ नए ख्वाब