गुलाल जो बिखरा था राहों में

रंग और गुलाल जो बिखरा था राहों में आती-जाती भीड़ और उड़ता धूल का गुबार राहों में याद करती उस दिन को जब उससे मिली थी इन्हीं राहों में साथ चलते-चलते छूट गया था हाथ कहीं राहों में देख रही थी वो ख्वाब जो बिखरा था राहों में कर रही थी वो बैठी इंतजार राहों में साथ चलेंगे फिर वे बनकर हमसफर जिंदगी की राहों में