मोहब्बत का अहसास

दूर-दूर तक पसरी ख़ामोशी...ना कोई साथ है ना किसी के साथ की ख्वाहिश... वीरान तन्हाई में भी तुम्हारी यादों का काफिला साथ है...तुम पास न सही, तुम्हारे होने का अहसास तो साथ है...कितना अजीब होता है किसी की चाहत का असर.. किसी की मोहब्बत का नूर, जो कभी तन्हाई में भी मोहब्बत की महफ़िल सजा देता है, तो कभी भीड़ में भी तनहा कर देता है...ना कहने के लिए अल्फाज़ की जरूरत होती है... ना नज़रों से हाले दिल बयां होता है...हम बस ख़ामोशी से उन्हें देखते रह जाते हैं और... ना जाने कब चुपके से ये दिल उनका हो जाता है... कितने खुशनसीब...